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जम्बूस्वामी की कथा
श्री उपदेश माला गाथा ३७ से संबंध था। रात को रानी पर देवदत्त को शंका हुई वह कपट निद्रा में सोया, रानी महावत के पास गयी। महावत ने देर से आने के कारण सांकल से पीटी। यह देखकर देवदत्त ने सोचा राजा के घर में ऐसा होता है तो मेरे घर में हो उसमें क्या आश्चर्य। वह गहरी निंद में सो गया। प्रातः बड़ी मुश्किल से जगाने के बाद राजा के पूछने पर उसने सारी घटना बतायी। राजा ने हाथी, महावत और रानी को पर्वत पर से गिरने का आदेश दिया। प्रजा के बहुत कुछ कहने पर पर्वत पर चढे हाथी को पुनः लोटाने को कहा। हाथी के तीन पैर उठ गये थे। महावत ने अभयदान मांगने पर उस हाथी के लिए उन दोनों को अभयदान दिया। हाथी को लोटाया दोनों को देश निकाला दिया।
मार्ग में चोर को बचाने महावत को चोर दर्शाकर पकड़वाया। महावत को शूली पर चढ़ाया। प्यास लगी। एक श्रावक 'नमो अरिहंताणं' गिनने का कहकर पानी लाने गया। इतने में जाप करते उसके प्राण निकल गये। वह व्यंतर बना। चोर ने रानी को अविश्वसनीय मानकर उसके वस्त्रालंकार लेकर नदी के एक किनारे छोड़ दी। वहां व्यंतर ने प्रतिबोधित कर साध्वी के पास दीक्षा दिलवायी।
जैसे वह रानी राजा के साथ के सुखोपभोग छोड़कर दुःखी बनी वैसे आप दुःखी होंगे।
___ जम्बूकुमार इस पर विद्युन्मालि का दृष्टांत कहा-जो मातंगी विद्या के संगत से सभी विद्या हार गया। "इस भरतक्षेत्र में कुशवर्धन नामक गाँव था। वहाँ एक ब्राह्मण के यहाँ विद्युन्माली और मेघरथ नाम के दो भाई रहते थे। एक बार वे किसी कार्यवश जंगल में गये। वहाँ एक विद्याधर ने उन्हें मातंगी नाम की विद्या
और उसे सिद्ध करने की विधि बताई। अंत में उसने कहा कि विद्या की साधना करते समय मातंगी नाम की देवी तुम से विषय सम्भोग की प्रार्थना करेगी। परंतु यदि तुम उस समय मन में स्थिरता रखोगे और विचलित नहीं होओगे तो यह विद्या सिद्ध होगी, अन्यथा नहीं।'' दोनों खुश होकर उस विद्या की साधना करने बैठे। दोनों में से विद्युन्माली का मन तो देवी के हावभाव और रतिसुख की प्रार्थना से चलायमान हो गया। मगर दूसरा भाई मेघरथ विद्याधर के वचन पर श्रद्धा रखकर अटल रहा। उसकी विद्या सिद्ध हो गयी। उसे ६ महीने में बहुत-सा धन मिला। 1. हेयोपदेया टीका में चंडालणी कन्या से विवाह कर एक वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन कर जाप
करने का लिखा है। वहाँ विद्युन्माली काली कलुटी स्त्री में मुग्ध हो गया। मेघरथ ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहकर जापकर विद्या सिद्ध बना। भाई को दूसरे वर्ष भी बुलाने आया पर वह उसका मोह छोड न सका। वह दुःखी हुआ। ऐसा लिखा है।
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