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सिंहवासी मुनि का दृष्टांत
श्री उपदेश माला गाथा ६१ छूटकर वह मुनि सीधे पाटलीपुत्र आया और उपकोशा वेश्या को वह रत्नकम्बल दे दी। उपकोशा ने उस कम्बल से अपने पैर पोंछे और अपवित्रस्थान पर उसे फैंक दी। यह देखकर साधु ने उससे कहा-'अरी अभागिनी! यह क्या किया तूने? अतिदुर्लभ रत्नकम्बल को गंदी नाली में फैक दिया?' वेश्या उपयुक्त अवसर देखकर हित-गर्भित वचन बोली- "तुम से बढ़कर अभागों का शिरोमणि और कौन हो सकता है? मैंने तो यह एक लाख मूल्य की रत्नकम्बल अपवित्र स्थान में फैंकी है, लेकिन तुम अनन्त जन्मों में भी दुर्लभ्य अमूल्य सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूपी रत्नत्रय को विषय वासना के कीचड़ में डालने को तैयार हो गये हो! अतिदुर्लभ साधुजीवन को नट-विट आदि पुरुषों के थूकने के स्थान और मल-मूत्र से भरे हुए अपवित्र इस घिनौने शरीर पर मोहित होकर भला तुम क्यों नष्ट करना चाहते हो? धिक्कार है तुम-से अविचारी को! पहले तो यह मनुष्य-जन्म मिलना ही दुर्लभ है; वह प्राप्त हो जाने पर उत्तम कुल, धर्म का श्रवण और श्रद्धातत्त्व का मिलना अत्यंत दुष्कर है; इतना होने पर भी साधुधर्म का आचरण मिलना तो अतीव दुर्लभ है। जरा सोचो तो सही, ऐसे अत्यंत दुर्लभ मुक्तिदाता साधुधर्म को छोड़कर तुम मेरे अंग पर मोहित होकर विषयसुख की आशा से धन के लिए वर्षाकाल में अनेक जीवों का घात करते हुए और अपने चारित्ररत्न को तिलांजलि देकर नेपाल देश में पहुंचे। भला, इस अधर्माचरण के फलस्वरूप तुम्हें दीर्घकाल तक नरक आदि दुर्गति में यातना नहीं सहनी पड़ेगी?" मुनि अब निरुत्तर और लज्जित हो चुका था। उसके सामने दीक्षाकाल का वह दृश्य चलचित्र की तरह उपस्थित हो गया। कितने वैराग्यभाव से मैंने गुरुदेव से दीक्षा ली थी! कितना उत्कृष्ट चारित्र और तप था मेरा! पर हाय, मुझ अधर्मी ने विषयवासना के मोहजाल में फंसकर सबका सत्यानाश कर दिया, इतने कष्ट भी उठाए, अनेक लोगों की गुलामी भी की! यह वेश्या बहन मुझे सत्य कह रही है। इस प्रकार सोचकर मुनि पुनः वैराग्यवासित होकर वेश्या से कहने लगा-"बहन! क्षमा करो मुझे! मैं विषयवासना के अंधे कुंए में गिरने जा रहा था, लेकिन तुमने मुझे इस कुंए में पड़ने से बचाया है, मुझे उबारा है। धन्य है तुम्हें। अब मैं भलीभांति विषयवासना के स्वरूप को समझ चुका हूँ।" इसमें मैं नहीं फंसूंगा। अब मैं इस अकृत्य से विरत हो रहा हूँ। वेश्या ने कहा- "मुनिवर! आपको ऐसा ही करना उचित है।"
इसके बाद सिंहगुफावासी वह मुनि वेश्या के यहाँ से चल पड़ा और
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