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श्री उपदेश माला गाथा १०६
श्री महावीर स्वामी के पूर्वजन्म की कथा राजा के मुंह में पड़ी। इससे गुरु के वचन पर विश्वास आने से राजा वापस आया। दत्तराजा को अकेला जानकर जितशत्रु राजा के सेवकों ने गिरफ्तार कर लिया और जितशत्रु को राजगद्दी पर बैठाया। नये राजा ने विचार किया- 'यदि यह जीता रहा तो दुःखदायी बनेगा।' अतः उसे एक लोहे की कोठी में डलवा दिया; जहाँ दत्त बहुत दिनों तक विलाप करता-करता दुःख पाता हुआ मर गया। मरकर वह सातवीं नरकभूमि में गया। श्री कालिकाचार्य चारित्राराधना करके देवलोक में पहुँचे!
__इसी तरह अन्य साधुओं को प्राणांत कष्ट आ पड़ने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिए, यही इस कथा का सार है ।।१०५।।
___ फुडपागडमकहंतो जहट्ठिअं बोहिलाभमुवहणइ । जह भगवओ विसालो, जर-मरण-महोदही आसि ॥१०६॥
शब्दार्थ - स्पष्टरूप से यथार्थ सत्य नहीं कहने पर साधक आगामी जन्म में बोधिलाभ (धर्मप्राप्सि) का नाश कर देता है। जैसे वैशालिक भगवान् महावीर ने मरीचि के भव में यथास्थित सत्य नहीं कहा, जिसके कारण उनके लिए जरा-जन्मों का महासमुद्र तैयार हो गया। यानी कोटाकोटी सागरोपमकाल तक संसार (जन्म मरण रूप) की वृद्धि हुई ।।१०६ ।। श्रीमहावीर स्वामी के सम्बन्ध में पूर्वजन्मों की वह घटना दे रहे हैं
श्री महावीर स्वामी के पूर्वजन्म की कथा ..
प्रथम (सम्यक्त्वप्राप्ति के भव में) पश्चिम महाविदेह में भगवान् महावीर का जीव नयसार के रूप में था। किसी ग्रामाधीश के अधीन नयसार वन का अधिकारी था। एक दिन वह जंगल में लकड़ियाँ कटवाने के लिए गया था। दोपहर होने तक सबका भोजन तैयार हो चुका। संयोगवश एक साधु रास्ता भूल जाने से भटकते-भटकते वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखकर नयसार को बड़ी खुशी हुई। उन्हें भक्तिपूर्वक अपने डेरे पर लाकर श्रद्धापूर्वक आहार-पानी दिया। और मुनि के आहार हो जाने के बाद उन्हें रास्ता बताने के लिए साथ-साथ चल पड़ा। मुनि ने नयसार को भावुक और योग्य जानकर उपदेश दिया, जिससे उसे सच्चा बोध (सम्यक्त्व) प्राप्त हो गया। मुनि को मार्ग बताकर नमस्कार करके वह घर आया। मुनि के द्वारा बताये हुए महामंत्र का जाप रोजाना करने लगा। अंतिम समय में इसी मंत्र के प्रभाव से वह आयुष्य पूर्ण कर दूसरे भव में सौधर्म देवलोक में पल्योपम की आयु वाला देव हुआ।
___ वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर तीसरे भव में भरत-चक्रवर्ती के पुत्र मरिचि के
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