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स्वजन भी अनर्थकर, संबंधी परशुराम-सुभूमचक्री की कथा श्री उपदेश माला गाथा १५१ कि उसी समय उसके परशु में से ज्वालाएँ निकलने लगी। इससे शंकित होकर परशुराम ने उन तापसों से पूछा- "सच सच बताओ, इस आश्रम में कोई क्षत्रिय है? मेरे परशु में से ज्वालाएँ निकल रहीं हैं, इसीलिए यहाँ कोई न कोई क्षत्रिय होना चाहिए।" तब तापसों ने कहा- "हम ही क्षत्रिय हैं।'' परशुराम ने उन्हें तपस्वी समझकर छोड़ दिया। इस तरह सारे क्षत्रियों को मारकर परशुराम हस्तिनापुर पर निष्कंटक राज्य करने लगा।
एक दिन परशुराम ने किसी नैमित्तिक से पूछा- "मेरी मृत्यु किसके हाथ से होगी?" उसने बताया- "जिसकी दृष्टि पड़ते ही मृतक्षत्रियों की ये दाढ़ें क्षीररूप हो जाय और जो उसका भोजन कर ले; समझ लेना, वही तुम्हें मारने वाला होगा। यह सुनकर परशुराम ने अपने मारने वाले को पहचानने के लिए एक दानशाला खोली, उसमें एक सिंहासन पर वह दाढ़ों का थाल रख दिया। इधर वैताढयवासी मेघनाद विद्याधर ने नैमित्तिक के कहने से अपनी पुत्री सुभूम को अर्पण कर दी और स्वयं उसका सेवक बनकर रहने लगा। एक दिन सुभूम ने अपनी माता से पूछा- "माताजी! क्या पृथ्वी इतनी ही है?" पुत्र के ये शब्द सुनते ही तारारानी की आँखों में आँसू उमड़ आये, वह गद्गद् स्वर से सारी पूर्व घटना सुनाकर कहने लगी-"बेटा! तेरे पिता और पितामह को मारकर तथा समस्त क्षत्रियों का नाशकर परशुराम हमारे राज्य पर कब्जा जमाये बैठा है। उसी के डर से भागकर हम इस तापस-आश्रम के भोयरे में रह रहे हैं।" माता के मुंह से यह बात सुनते ही क्रुद्ध होकर सुभूम सहसा भोयरे से बाहर निकला और मेघनाद के साथ हस्तिनापुर की दानशाला में आया। दानशाला में घुसते ही सुभूम की दृष्टि सिंहासन पर रखे दाढों के थाल पर पड़ी और वे तमाम दाढ़ें क्षीर रूप में परिणत हो गयी। सुभूम उस क्षीर को खाने लगा। परशुराम पहचान गया कि यही मेरा वधकर्ता है। वह तुरंत सुसज्ज होकर जाज्वल्यमान परशु लेकर सुभूम पर टूट पड़ा। परंतु सुभूमि की दृष्टि पड़ते ही उसके पूर्व पुण्य की प्रबलता के कारण परशुराम का परशु निस्तेज हो गया। सुभूम ने भी भोजन करने के बाद वह थाल उठाकर परशुराम पर फैंका। तुरंत ही वह थाल हजारदेवों से अधिष्ठित चक्ररत्न बन गया। उस चक्र ने परशुराम का मस्तक छेद दिया। उसी समय सुभूम का चक्रवर्तित्व प्रकट हो गया। देवों ने जयजयकार के नारों के साथ पुष्पवृष्टि की। इसके पश्चात् सुभूमचक्री ने परशुराम द्वारा मारे हुए क्षत्रियों के वैर को याद करके चुन-चुनकर ब्राह्मणों का वध किया। इस तरह २१ बार पृथ्वी ब्राह्मण रहित बनायी।
___ चक्ररत्न के बल से सुभूम ने भरतक्षेत्र के ६ खण्डों पर विजय प्राप्त की; 262