________________
गुरुकुलवास, एकलविहारी के गुण-दोष . श्री उपदेश माला गाथा १५६-१५८ को सहन करने में जरा मानसिक पीड़ा भी होती है। गुरु की आज्ञा के अधीन हरदम रहना पड़ता है, जिससे अपनी स्वतंत्रता दबानी पड़ती है। गुरु के द्वारा (सारणा) किसी अकार्य को न करने का बार-बार स्मरण दिलाने, (वारणा) किसी कार्य में प्रमाद करते हुए को रोकने, रोकटोक करने, (चोयणा) अच्छे कार्य में प्रेरित करने और (पडिचोयणा) न करने पर कभी कोमल और कभी कठोर शब्दों में बार-बार प्रेरणा करने पर होने वाले मानसिक क्षोभ को भी सहना पड़ता है। परंतु इससे जीवन का सुंदरनिर्माण हो जाता है। इसीलिए गच्छ में रहना ही लाभदायी है ॥१५५॥
इक्कस्स कओ धम्मो, सच्छंदगईमईपयारस्स? । किं या रेड़ इक्को? परिहरउ कहं अज्जं वा? ॥१५६॥
शब्दार्थ - गुरुकुलवास (गण) को छोड़कर स्वच्छन्दगति, मति और प्रचार वाले अकेले साधु का संयमधर्म कैसे निभ सकता है? वह अकेला मुनिधर्म की आराधना कैसे करेगा? अकार्य करते हुए उसे कौन रोकेगा?।।१५६।। मतलब यह है कि निरंकुशता से (बिना बड़ों की आज्ञा के) अकेले साधु में संयमधर्म की यथार्थ आराधना होनी कठिन है। इसीलिए गुरुकुलवास में रहना चाहिए।
कत्तो सुत्तत्थागम-पडिपुच्छणचोयणा, य इक्कस? । विणओ वेयावच्चं, आराहणा य मरणंते? ॥१५॥
शब्दार्थ - अकेले मुनि सूत्रों (शास्त्रों) का अर्थ (वाचना), प्रतिपृच्छा, चोयणा (प्रेरणा) आदि कौन देगा? विनय या वैयावृत्य का लाभ उसे कैसे मिलेगा? अंतिम समय में मारणांतिक संल्लेखना-संथारा की आराधना कौन करायेगा? ||१५७।।
भावार्थ - निरंकुश एकलविहारी साधु के सूत्र और अर्थों का अध्ययन कैसे हो सकेगा? तथा किसी विषय में शंका होने पर समाधान किससे करेगा? प्रमादादि के कारण कदाचित् संयम से स्खलित हो रहा हो, उस समय उसे हितकर प्रेरणा कौन करेगा? अकेला साधु विनय और वैयावृत्य किसका करेगा? तथा अंतिम समय में अनशन की आराधना उसे कौन करायेगा? स्वच्छन्द-बुद्धि से अनियंत्रित एकाकी साधु इन उत्तम लाभों से वंचित ही रहता है। अतः जो विनययुक्त होकर गुरु-सान्निध्य में रहते हैं, उन्हें ये लाभ अनायास ही मिल जाते हैं ॥१५७।।
___ पिल्लिजेसणमिक्को, पइन्नपमयाजणाउ निच्चभयं । काउमणो वि अकज्जं, न तरइ काऊण बहुमज्झे ॥१५८॥
268