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श्री उपदेश माला गाथा १६४
सत्यकि विद्याधर की कथा साध्वी के पास जाकर चारित्र ग्रहण किया और छट्ठ अट्ठम आदि अनेक प्रकार की तपस्या करने लगी।
एक दिन वह साध्वी सूर्य की आतापना ले रही थी। उस समय पेढाल नाम के विद्याधर ने उसे वहाँ से जाते हुए देखा। उसे देखकर उसे विचार आया'यह सती ध्यान में स्थित है और अत्यंत रूपवती है। इसीलिए यदि मैं इस साध्वी की कुक्षि से पुत्र उत्पन्न करूँ तो वह पुत्र मेरी विद्या का पात्र हो सकता है।' यों विचारकर विद्या के बल से उसने सर्वत्र अंधकार कर दिया और वह न जान सके इस तरह से भौरे का रूप बनाकर उसके साथ संभोग करके उसकी योनि में वीर्य रखा। गर्भ रह जाने से उसके गर्भ में स्थित जीव समय पाकर क्रमशः बढ़ने लगा। इससे सुज्येष्ठा साध्वी के मन में संदेह उत्पन्न हुआ। उसने उस संबंध में ज्ञानी मुनि से पूछा। ज्ञानी ने उसका संदेह-निवारण करते हुए कहा- "इसमें तेरा दोष नहीं है। तूं तो सती है।" गर्भकाल पूरा होने पर उस साध्वी के पुत्र हुआ। उसका नाम सत्यकि रखा गया। वह साध्वी के उपाश्रय में बड़ा होने लगा। साध्वीजी के मुख से आगमों के पाठ सुनने से उसे सभी आगम कण्ठस्थ हो गये।
एक दिन सुज्येष्ठा साध्वी श्रीवीर भगवान् को वंदनार्थ समवसरण में आयी। सत्यकि भी अपनी माता के साथ आया। उस समय कालसंदीपक नाम के एक विद्याधर ने भगवान् से पूछा- "भगवन्! मुझे किस से भय है?" भगवान् ने कहा- "तुझे इस सत्यकि नाम के बालक से भय है।" उसे सुनकर कालसंदीपक ने सत्यकि को तिरस्कारपूर्वक लात मारकर गिरा दिया। इससे सत्यकि उस पर क्रोधित हुआ। पेढाल विद्याधर को जब यह पता लगा कि सत्यकि मेरे ही वीर्य से उत्पन्न पुत्र है तो उसने उसे रोहिणी-विद्या दी। सत्यकि उस विद्या की साधना कर रहा था कि कालसंदीपक उसमें विघ्न डालने लगा। उस समय रोहिणी-विद्या की अधिष्ठायिका देवी ने स्वयं प्रत्यक्ष होकर कालसंदीपक को ऐसा करने से रोका। क्योंकि सत्यकि का जीव पहले पाँच जन्मों में रोहिणी-विद्या की साधना करते-करते मरा था और छटे जन्म में रोहिणी-विद्या की साधना करते समय उसकी आयु जब छह महीने शेष रह गयी थी, तब विद्या की देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा था-"सत्यकि! तेरी आयु केवल छह महीने ही बाकी है, इसीलिए यदि तूं कहे तो मैं इसी जन्म में सिद्ध हो जाऊं, नहीं तो अगले जन्म में सिद्ध होऊंगी।" तब सत्यकि के जीव ने कहा था कि “यदि मेरी आयु थोड़ी ही बाकी है तो आगामी जन्म में तुम सिद्ध होना।" इस तरह पूर्वजन्म में वचन दिया था, इसीलिए रोहिणी विद्यादेवी इस जन्म में थोड़े ही समय में सिद्ध हुई। फिर उसने प्रत्यक्ष होकर
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