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चूलणी रानी की कथा
श्री उपदेश माला गाथा १४५ नगर में किसी जगह सम्मिलित होते और वहाँ इकट्ठे रहते थे। एक बार ब्रह्मराजा जब मस्तक की व्याधि से मर गया तो शेष चारों मित्र नरेशों ने परस्पर विचार किया कि "हमारा प्रियमित्र प्रीतिपात्र ब्रह्मराजा इस साल मर गया है; उसका लड़का ब्रह्मदत्त अभी छोटा है, १२ साल का है, इसीलिए हममें से किसी को बारी-बारी से प्रतिवर्ष इस राज्य की सुरक्षा के लिए ब्रह्मराजा के यहाँ रहना चाहिए।'' इस निर्णय के अनुसार उन चारों में से दीर्घ राजा वहीं रह गया और बाकी के तीनों मित्रराजा अपने-अपने नगर को लौट गये। दीर्घराजा वहाँ रहकर राज्यसंचालन करने लगा। धीरे-धीरे ब्रह्मराजा का खजाना भी उसने संभाल लिया और उसके अन्तःपुर में जाने-आने लगा। एक दिन रूप लावण्य की राशि नव-यौवना चूलणी रानी को देखकर वह कामविह्वल हो गया। चूलणी रानी ने भी जब दीर्घराजा को देखा तो वह भी उस पर मोहित हो गयी। दोनों की चार आँखे हुई। परस्पर हास्य-विनोद . होता रहता। एक दिन दोनों ने कामान्ध होकर रतिक्रीड़ा की। यह क्रम बढ़ता चला गया। अब तो दीर्घराजा निःशंक होकर अपनी स्त्री की तरह चूलणी के साथ सहवास करने लगा। लोकनिन्दा और भय छोड़कर दोनों परस्पर कामासक्त होकर रहने लगे। किसी तरह से धनु नामक वृद्ध मंत्री को इनके इस गुप्त अनाचार का पता लग गया। वह सोचने लगा-"अर र! इस दुष्ट दीर्घराजा ने बड़ा ही अविचार पूर्ण कार्य किया है! पता नहीं, अन्य तीन मित्र नरेशों ने इसे क्या समझकर राज्याधिकार दिया है! इसने अनाचार-सेवन करके बहुत बुरा किया है। इस मूढ़ को अपने मित्र की पत्नी के साथ व्यभिचार करते हुए जरा भी लज्जा नहीं आती? धिक्कार है इसे!" यों विचार करते-करते मंत्री अपने घर आया और अपने पुत्र वरधनु को उसने सारी बात कही। उसने मौका देखकर एकान्त में ले जाकर ब्रह्मदत्त को सारी बात कह सुनाई। इसे सुनकर ब्रह्मदत्त अत्यंत कुपित हुआ। वह उसी समय दीर्घराजा की सभा में पहुँचा और एक कोयल के साथ कौए का संगम करवाकर कहने लगा- 'दुष्ट कौए! तूं कोकिला के साथ संगम करता है? तेरा यह आचरण बिलकुल अयोग्य है। मैं इसे कदापि सहन नहीं करूंगा!" यों कहकर कौए को हाथ से पकड़कर मार डाला। फिर उसने लोगों को लक्ष्य में रखकर कहा- "मेरे नगर में जो कोई इस प्रकार का दुष्ट कार्य करता है या करेगा, उसे मैं सहन नहीं करूंगा।" यह सुनकर दीर्घराजा मन ही मन सहम गया। उसने जाकर चूलणी को सारी घटना बताई। चूलणी ने बात को हंसी में टालते हुए कहा- "यह तो बालक्रीड़ा है। आप इससे जरा भी न डरें। आप तो आनंद से सुखभोग करते हुए जिंदगी काटें।" कुछ दिन व्यतीत हो जाने के बाद फिर एक दिन राजसभा में उसी
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