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स्वजन भी अनर्थकर पुत्र कोणिक राजा की कथा श्री उपदेश माला गाथा १४६ महीने में अपने पति (श्रेणिक राजा) के कलेजे का मांस खाने का अशुभ दोहद पैदा हुआ। दोहद पूर्ण न होने से रानी दिनोंदिन दुर्बल होती जाती थी। रानी की ऐसी हालत देखकर एक दिन राजा श्रेणिक ने उससे अत्यंत आग्रहपूर्वक इसका कारण पूछा। रानी ने अशुभ दोहद उत्पन्न होने की बात कही। इस पर राजा ने उसे आश्वासन देते हुए कहा- "कमलाक्षी प्रिये! तुम जरा स्वस्थ हो जाओ, फिर तुम्हारा यह दोहद पूर्ण किया जायेगा।"
। राजा ने मौका देखकर एक दिन यह बात अपने बुद्धिमान पुत्र अभयकुमार से कही। अभयकुमार ने युक्ति सोचकर राजा के हृदय पर किसी अन्य जीव के मांस का टुकड़ा बांधकर रानी के सामने उसे काटकर उसका यह अशुभ दोहद पूर्ण किया। गर्भकाल पूर्ण होने पर चिल्लणा रानी ने पुत्र को जन्म दिया। रानी ने इस अनिष्टकारक पुत्र को जिंदा ही अशोकवाटिका के एक वृक्ष के नीचे लिटा दिया। दासी से जब राजा ने यह बात सुनी तो पुत्र-स्नेहवश वे वहाँ जाकर उसे उठा लाये और लाकर रानी को सौंप दिया। राजा ने हर्ष से उसका नाम अशोकचन्द्र रखा था, लेकिन उस पेड़ के नीचे एक मुर्गे ने आकर उसकी अंगुली का एक कोना काट खाया था, इस कारण सब उसे कोणिक नाम से पुकारने लगे। अंगुली की पीड़ा के कारण जब बालक कोणिक जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगा तो राजा बार-बार उसकी अंगुली को अपने मुंह में डालकर चूसता और खराब खून बाहर थूक देता। इससे कोणिक स्वस्थ हो गया। बचपन पार करके जब जवानी में कदम रखा तो सुंदर राजकन्या के साथ राजा श्रेणिक ने उसकी शादी कर दी। कोणिक विषयसुखों में मग्न रहकर जीवन व्यतीत करने लगा।
___ कोणिक के देवसमान दो छोटे भाई और थे। उनका नाम था-हल्लकुमार और विहल्लकुमार। राजा श्रेणिक ने जब अपनी जायदाद का बंटवारा सब पुत्रों में किया तो इन दोनों कुमारों को क्रमशः बहुमूल्य हार और सेचनक हाथी दिये। कोणिक के मन में इससे बहुत ईर्षा पैदा हुई। पिता के प्रति रोष भी था। स्वयं राजा बनने की धुन भी थी। अतः राजा श्रेणिक को उसने छल करके लकड़ी के पीजरे में बंद कर दिया और स्वयं राजा बन बैठा। राजा होने के अभिमान में आकर वह अपने पिता को सदा कोड़े लगाता था।
कोणिक राजा की रानी पद्मावती ने एक सुंदर पुत्ररत्न को जन्म दिया। जब वह दो साल का था, तब कोणिक राजा एक दिन उसे अपनी गोद में बिठाकर भोजन कर रहा था। तभी अचानक उस बच्चे ने पेशाब कर दिया। परंतु कोणिक जरा भी मुंह मचकोड़े बिना उस मूत्रमिश्रित भोजन को खाता रहा। 250