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श्री उपदेश माला गाथा १०६
श्री महावीर स्वामी के पूर्वजन्म की कथा भगवान् ऋषभदेव के निर्वाण के बाद मरिचि उनके साधुओं के साथ विचरण करता था। एक दिन मरिचि बीमार बड़ा। परंतु जैनसाध्वाचार में शिथिल होने के कारण उसकी सेवाशुश्रूषा किसी साधु ने नहीं की। तब उसने सोचा'इतने परिचित साधुओं के होते हुए भी किसी ने मेरी परवाह न की। इसीलिए यदि मैं स्वस्थ हो गया तो एक सेवाभावी आज्ञाकारी शिष्य अवश्य बनाऊंगा।' मरिचि परिव्राजक कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गया। एकबार कपिल नाम का एक राजपुत्र उसके पास आया। उसने उसे उपदेश देकर प्रतिबुद्ध किया। मरिचि ने जब कपिल से उन निग्रंथों के पास दीक्षा लेने का कहा तो उसने कहा-"स्वामिन्! मैं तो आपका ही शिष्य बनूंगा।" मरिचि ने कहा- 'तुम्हारी बात ठीक है। लेकिन ये साधु मन-वचन-काया से महाव्रतों का पूर्णतया पालन करते हैं। मैं इतना उच्चचारित्र पालन नहीं करता।' तथा अपनी और भी कमियाँ उसे बतायी, मगर गुरुकर्मा कपिल नहीं माना। उसने कहा-"आपके पास ही मैं दीक्षा लूंगा। क्या आपके दर्शन में धर्म नहीं है?" 'यह मेरे योग्य शिष्य मिला है, यह सोचकर मरिचि ने उससे कहा-'कपिला! इत्थंपि इहं पि (हे कपिल! जैनदर्शन में भी धर्म है, और मेरे दर्शन में भी।)। इस प्रकार की सूत्र-(सिद्धान्त) विरुद्ध प्ररूपणा करने से मरिचि ने कोटाकोटी सागरोपम संसार की वृद्धि कर ली। इस कर्म की आलोचना किये बिना ही वह ८४ लाख पूर्व का आयुष्य पूर्ण कर चौथे भव में पांचवें ब्रह्मलोक नामक देवलोक में १० सागरोपम की स्थिति वाला देव बना। वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर पांचवें भव में कोल्लाक सन्निवेश में ८० लाख पूर्व की आयुष्य वाला ब्राह्मण हुआ। वह अत्यंत विषयासक्त था। किन्तु जिंदगी के अंतिम दिनों में त्रिदंडी दीक्षा लेकर आयुष्य पूर्ण किया। बीच में चिरकाल तक अनेक भवों में (जिनकी गणना इन २७ भवों में नहीं की गयी) परिभ्रमण करता रहा। वहाँ से छठे भव में स्थूणानगरी में ७२ लाख वर्ष की आयु वाला पुष्य नाम का ब्राह्मण हुआ। अंतिम दिनों में त्रिदण्डी वेष में उसका देहांत हुआ। सातवें भव में सौधर्म देवलोक में मध्यम स्थिति वाला देव बना। वहाँ से आयुष्य समाप्तकर ८ वें भव में चैत्य सन्निवेश नामक गाँव में अग्निद्योत नाम का ६० लाख पूर्व की आयु वाला ब्राह्मण हुआ। अंतिम जिंदगी में उसने त्रिदंडीवेष धारण किया। दशवें भव में मंदिर सन्निवेश में अग्निभूति नाम का ६० लाख पूर्व का आयु वाला द्विज' बना। अंत में त्रिदंडी बनकर आयु पूर्ण कर ग्यारहवें भव में तीसरे कल्प में मध्यम स्थिति वाला देव बना। बारहवें भव में श्वेताम्बरी में ४४ लाख पूर्व की आयु वाला भारद्वाज नामक ब्राह्मण 1. अन्य कथा में भगवान की उपस्थिति में यह घटना बनने का उल्लेख है।
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