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श्रा स्थुलभद्र मुनि की कथा
श्री उपदेश माला गाथा ५६ भोगे ही अकाल में ही काल का ग्रास बन जाता है। मेरे पिताजी की मृत्यु का मुझे पता तक न चला। इस प्रकार विचारों के झूले में झूलते हुए स्थूलभद्र को वैराग्य हो गया। शासनदेव ने उन्हें मुनिवेश दिया। स्वयं मुनिवेश धारण करके स्थूलिभद्र नंद राजा की राजसभा में पहुँचे। स्थूलभद्र को मुनिवेश में देख सबके आश्चर्य का पार न रहा। नंदराजा ने पूछा-"यह क्या कर लिया आपने?" स्थूलभद्र"मैंने सोच समझकर योग्य ही किया है।" इतना कहकर वे सीधे आचार्य सम्भूतिविजय के पास पहुँचे और उनसे मुनि दीक्षा ग्रहण की।
___कोशा वेश्या ने जब यह सुना तो उसके होश उड़ गये। विरह में व्याकुल होकर आँखों से अश्रुपात करती हुई वह विलाप करने लगी- "हे प्राणधार! आपने मुझे अधबिच में ही क्यों छोड़ दिया? मैंने ऐसा क्या अपराध किया था? अब मैं क्या करूँगी? कहाँ जाऊंगी? आपने राजमुद्रा को छोड़ भिक्षामुद्रा क्यों अंगीकार की? आपके बिना अब मेरा कौन आधार होगा?"
इधर चातुर्मास लगने में कुछ ही दिन बाकी थे कि आचार्य सम्भूतिविजय के शिष्यों में से एक ने उनके पास आकर प्रार्थना की- "गुरुदेव! मुझे आज्ञा दें; मैं यह चातुर्मास सिंह की गुफा में बिताऊंगा।" दूसरे शिष्य ने कहा- "गुरुदेव! मुझे सांप की बांबी (बिल) पर चौमासा करने की अनुमति दें।" तीसरे शिष्य ने निवेदन किया- "गुरुदेव! कुंए की चौखट पर चातुर्मास व्यतीत करने की मुझे अनुज्ञा दें। इतने में स्थूलभद्रमुनि आये उन्होंने गुरुदेव से कोशा वेश्या के यहाँ चौमासा बिताने की आज्ञा मांगी। इस पर आचार्यश्री ने चारों को तद्-योग्य जानकर मनोनीत स्थलों पर चौमासा व्यतीत करने की आज्ञा दे दी। चारों ही मुनि प्रसन्न होकर अपने-अपने मनोनीत स्थलों की ओर चल पड़े। स्थूलभद्र मुनि भी गुरुआज्ञा लेकर कोशा वेश्या के यहाँ पहुँचें। अपने यहाँ अपने पूर्व प्रेमी को अकस्मात् आये देख कोशा का रोम-रोम खिल उठा। उसने भाव-भक्ति पूर्वक पंचांग नमाकर वंदन-नमस्कार किया। हर्षाश्रु उमड़ पड़े। कहने लगी-"भले पधारें, नाथ! स्वागत है, आपका! दासी चरणों में हाजिर है। जो भी सेवा हो फरमाइए।" स्थूलभद्र मुनि ने उसकी चित्रशाला में चौमासा बिताने की अपनी इच्छा प्रकट की। कोशा ने सोचा-"अब मेरा मनोरथ पूर्ण हो जायगा। चार महीनों में तो मैं इनको पूर्णतया अपने वश में कर लूंगी।" कोशा ने सहर्ष अनुमति दे दी और उनके रहने के लिए चित्रशाला खोल दी। स्थूलभद्र ने कहा-मुझसे तेरह हाथ दूर रहकर बात करना। उसने स्वीकारा। कोशा १२ वर्ष के अपने गाढ़ परिचित पुराने प्रेमी स्थूलभद्र की श्रृंगाररस में सराबोर करने के लिए उनके सामने विविध हावभाव, चेष्टाएँ करती 150