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श्री उपदेश माला गाथा ३७
जम्बूस्वामी की कथा था कि सोये हुए बाघ के मुंह में प्रवेश कर उसकी दाढ़ों में लगे हुए मांसपिण्ड को अपनी चोंच में लेकर बाहर निकल आता और कहता-"ऐसा साहस मत करो।" इसीसे उसका नाम "मासाहस' पड़ गया। मगर वह बार-बार जैसा कहता था, उससे ठिक विपरीत आचरण करता था। उसे ऐसा साहस न करने के लिए सभी पक्षियों ने समझाया, लेकिन इसके बावजूद भी वह मांस लोलुपता के कारण बार-बार बाघ के मुंह में प्रवेश करता था। एक दिन जब वह बाघ के मुंह में घुसा था, तभी अचानक बाघ जाग गया और अपने शिकार को मुंह में घुसे देख खा गया।"
यह सुनकर जम्बूकुमार ने कहा-हे नारियों! तुम तो मुझे मौत से क्या बचाओगी; इस संसार में कोई भी किसी की रक्षा नहीं कर सकता! केवल धर्म रूपी मित्र की शरण में जाने पर ही मनुष्य की रक्षा हो सकती है। जैसे मंत्री की रक्षा धर्म रूपी मित्र के सिवाय और किसी ने नहीं की। लो सुनो, मैं तुम्हें पूरा दृष्टांत सुनाता हूँ
"सुग्रीवपुर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसके सुबुद्धि नाम का मंत्री था। उसने अपने जीवन में तीन मित्र बनाये। पहला नित्यमित्र था; जिसके साथ वह रात-दिन सम्पर्क रखता था और उस पर संकट आने पर वह हजारों रुपये खर्च करके उसे शांति पहुँचाया करता था। दूसरा पर्वमित्र था, जिसे कभी त्यौहार या उत्सव के मौके पर उचित सम्मान दिया करता था; अन्य दिनों में उससे खास कोई सम्पर्क नहीं होता था। तीसरा था प्रणाममित्र; जिसके साथ रास्ते में मिल जाने पर प्रणाम करने-भर की मित्रता थी। एक बार सुबुद्धि मंत्री से एक बड़ा भारी अपराध हो गया, जिसके कारण राजा कुपित होकर उसे प्राणदण्ड देने की सोच रहा था। मंत्री को पता लगा तो उसके होश गायब हो गये, वह रातोरात भागकर अपनी प्राणरक्षा के लिए नित्य मित्र के वहाँ पहुँचा उसके यहाँ छिपे रहने की इच्छा की बात बताई। सुनते ही नित्यमित्र ने साफ.इन्कार कर दिया और उसे झटपट वहाँ से चले जाने का कहा। निराश होकर मंत्री पर्वमित्र के यहाँ पहुँचा और उसे भी अपना सारा हाल दुःखित होकर सुनाया एवं शरण देने की प्रार्थना की। पर्वमित्र ने भी लाचारी प्रकट करते हुए कहा-"भाई! वैसे तो मैं तुम्हें रख लेता। परंतु तुम राजा के अपराधी हो। राजा को पता लग जाने पर तुम्हारे साथ-साथ मैं और मेरा परिवार भी बर्बाद हो जायगा। अतः मेरे परिवार पर कृपा करके आप और कहीं पधारें, यही उचित है।" आखिर निराश और उद्विग्न होकर मंत्री प्रणाम मित्र के यहाँ पहुँचा। मंत्री को आये देखकर प्रणाममित्र ने खड़े होकर हाथ जोड़े और प्रीति पूर्वक
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