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श्री उपदेश माला गाथा ३७
जम्बूस्वामी की कथा है।'' जम्बूकुमार की पत्नियाँ पूछने लगीं- "वह कौआ कौन था, जिसने अनर्थ पाया?"
जम्बूकुमार बोले- "भृगुकच्छ में रेवानदी के किनारे एक हाथी मर गया। इसीलिए वहाँ बहुत-से कौए इकट्ठे हो गये; उनके आने-जाने का तांता लग गया। जैसे दानशाला में ब्राह्मण इकट्ठे होकर भोजन पर टूट पड़ते हैं, वैसे कौए भी इकट्ठे होकर मरे हुए हाथी की लाश पर टूट पड़े और उसे नोचने लगे। उनमें से एक कौए ने हाथी की गुदा में प्रवेश किया। "यहाँ बहुत मांस है। अब मुझे बाहर जाने की क्या जरूरत है;" यह सोचकर वह मांसलोलुप कौआ गुदा में ही बैठा रहा। ग्रीष्मकाल होने से कुछ ही दिनों में गुदा का द्वार सिकुड़ गया और गुदाद्वार बंद हो गया। इस कारण वह कौआ अंदर ही बंद हो गया। वर्षाऋतु आने से हाथी का शब पानी के प्रवाह में बह गया। अब गुदाद्वार खुला तो वह कौआ बाहर निकला। मगर चारों दिशाओं में पानी ही पानी देखकर वह कौआ वहीं मर गया। इस संसार में मरे हुए हाथी की लाश के समान स्त्री है; विषयासक्त पुरुष कौए के समान है। वह संसाररूपी जल में डूबकर मर जाता है। इसीलिए विषयलोभ की अधिकता के कारण ही मनुष्य शोक-संताप करता है।"
__यह सुनकर द्वितीय पत्नी पद्मश्री तपाक से बोली- "स्वामिन्! अतिलोभ से तो मनुष्य उस बंदर की तरह दुःख पाता है।'' बीच में ही प्रभवचोर पूछने लगा"बहनजी! वह कौन-सा बंदर था? उसने कैसे दुःख पाया? खोलकर कहिए।" पद्मश्री बोली-"किसी जंगल में एक बंदर का जोड़ा बड़े आनंद से रहता था। एक दिन बंदर वहाँ के एक देवाधिष्ठित तालाब में गिर पड़ा। गिरते ही देव-प्रभाव से वह मनुष्य बन गया। उसे देखकर बंदरी भी उसी तालाब में कूद पड़ी और वह भी सुंदर स्त्री बन गयी। एक दिन मनुष्य रूपधारी उस बंदर ने कहा- "इस तालाब में एक बार गिरने से मैं मनुष्य बन गया तो अब दूसरी बार गिरने से अवश्य ही देव बन जाऊंगा।" उसकी स्त्री ने उसे बहुतेरा समझाया और ऐसा करने से मना किया। मगर वह उसकी एक न मानकर पुनः उसी तालाब में कूदा। फल स्वरूप वह मनुष्य से वापिस बंदर हो गया। वहाँ उस समय कोई राजा आया हुआ था। वह उस रूपवती स्त्री (बंदरी) को अकेली देख अपने यहाँ ले आया। और वह बंदर किसी मदारी के हाथ में पड़ गया। मदारी ने उसे नृत्य करना सिखाया, शहर में नृत्य करता हुआ बंदर मदारी के साथ उसी राजा के महल में पहुँचा। वहाँ बंदर ने अपनी स्त्री को देखा तो मन ही मन अत्यंत दुःखी हुआ और पछताने लगा। इसी बंदर की तरह आपको भी दुःखी न होना पड़े, इसीलिए दीर्घदृष्टि से विचार करें।"
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