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श्री उपदेश माला गाथा २५
बाहवलि का दृष्टांत मैं उसे दया करके हाथों में झेल लिया करता था। मालूम है .. है, ये सब बातें भूल ने के कारण ही तुझे भेजा है। इतने दिन तक मैंने अपने बड़े भाई की पिता के समान सेवा की; मगर अब मैं उसे बिलकुल नहीं चाहता। मैं उसकी उपेक्षा करता हूँ। गुणहीन और लोभातुर बड़े भाई से मुझे क्या मतलब? उसने मेरे ९८ छोटे भाईयों का राज्य छीन लिया। उन्होंने भाई के साथ झगड़ा करने से होने वाली लोकनिन्दा के डर से स्वतः राज्य छोड़कर मुनि दीक्षा अंगीकार कर ली। परंतु मैं इसे सहन नहीं करूँगा। मेरा भुजा प्रहार केवल भरत ही सहन करेगा। परंतु उस भुजा प्रहार को सहन करने दूसरा कोई न आये। दूत अवध्य (नहीं मारने योग्य) होता है। अतः हे दूत! तूं मेरी दृष्टि से तत्काल दूर हो जा।" इस प्रकार बाहुबलि की लाल-लाल आँखें और सूर्यमंडल के समान उद्दीप्त मुख देख कर सुवेग दूत भयभीत होकर अपना-सा मुंह लिये धीरे-धीरे वहाँ से बाहर निकला और नगरी में थोड़ा-सा घूमकर अपमानित स्थिति में ही रथ में बैठकर अयोध्या की और चल पड़ा।
रास्ते में वह बहली (बाल्हीक-बलख) देश को देखता हुआ जा रहा था। उसने कई जगह लोगों को कानाफूसी करते हुए सुना-"अरे! यह भरत कौन है? जो हमारे स्वामी के साथ युद्ध करना चाहता है? हमें तो उसके सरीखा कोई मूर्ख नहीं दीखता, जो सोये हुए सिंह को जगा रहा है।'' इस तरह लोगों के मुंह से भिन्न-भिन्न बातें सुनकर सुवेग आश्चर्य में पड़ गया और विचार करने लगा-"सचमुच इस देश के निवासी शूरवीर, पराक्रमी, स्वाभिमानी और राजभक्त जान पड़ते हैं। वास्तव में इनके स्वामी (राजा) के गुणों की ही · प्रतिच्छाया इनमें दिखाई देती है। इन पर बाहुबलि का ही प्रभाव है; भरत का
नहीं। भरत ने इन्हें बुलाकर यह क्या किया? सचमुच उन्होंने अयोग्य किया
इस प्रकार वहाँ के लोगों से शंकित, भीत और चिन्तित होता हुआ दूत कुछ दिनों में अयोध्या पहुँचा। भरत की राज्यसभा में जाकर उसने सारा हाल निवेदन किया और अंत में कहा-"ज्यादा क्या कहूँ! आपका छोटा भाई आपको तृणवत् समझता है। इतने से आप समझ जाइए।" दूत से सारी बात सुनकर भरत चक्रवर्ती ने वहाँ से ससैन्य कूच किया। भरत की महासेना जब चलने लगी, तब दिशामंडल भी कंपायमान होने लगा। उस सैन्य का स्वरूप बताते हैं
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