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श्री उपदेश माला गाथा ३७
जम्बूस्वामी की कथा का एक देव भी वहाँ आया और सूर्याभदेव के समान उसने प्रभु के सामने नाटक करके उनकी भक्ति की और उनसे विनयपूर्वक अपना स्वरूप पूछा। भगवान् ने उनसे कहा-'आज से सातवें दिन तुम यहाँ से च्यवन (आयुष्यपूर्ण) करके मनुष्यजन्म प्राप्त करोगे।' यह सुनकर प्रसन्नतापूर्वक वह देव वहाँ से अपने स्थान को लौटा। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने विस्मयवश पूछा-"भगवन्! यह देव मनुष्यलोक में कहाँ और किसके यहाँ उत्पन्न होगा?" महावीर स्वामी ने कहा"राजन्! यह देव इसी राजगृह नगर में जम्बू नाम का अंतिम केवलज्ञानी होगा।" जिज्ञासा बढ़ जाने से श्रेणिक राजा ने भगवान् से उसके पूर्वजन्म का स्वरूप बताने को कहा। भगवान् ने इस प्रकार कहा
"इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुग्रीव नामक गाँव था। उसमें राबड नामक एक दरिद्र रहता था। उसकी पत्नी का नाम रेवती था। उसके भवदेव और भावदेव दो पुत्र हुए। भवदेव ने समय पाकर विरक्त होकर मुनिदीक्षा धारण कर ली। दूर-सुदूर देशों में विचरण करते-करते एक बार वे अपने पूर्वाश्रम के गाँव में आये। भावदेव की शादी हुए अभी थोड़े ही दिन हुए थे। मुनि बने हुए अपने भाई का गाँव में आगमन सुनकर लोकलज्जावश भावदेव भी उनके दर्शनार्थ गया। लज्जा से (भाई मुनि के उपरोध से) उसने उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली। भवदेव मुनि जब तक रहे तब तक भावदेव का मन संयम में स्थिर रहा; किन्तु भवदेव मुनि आयुष्य पूर्णकर स्वर्गगामी हो जाने के बाद भावदेव मुनि का चित्त संयम से डांवाडोल हो उठा। वे संयम की बांध तोड़कर मन ही मन अपनी नवपरिणीता पत्नी नागिला को याद करने लगे। रातदिन उसी की रट लगाते हुए विषयभोगों की अभिलाषा से वे अपने गृहस्थाश्रम के गाँव की और चल पड़े। क्रमशः विचरण करते हुए वे सुग्रीव गाँव के बाहर श्रीऋषभदेव स्वामी के मंदिर में ठहरे। तपस्या से दुर्बल बनी हुई नागिला ने जब भावदेव मुनि का आगमन सुना तो वह भी उनके दर्शनार्थ पहुंची। उसने अपने गृहस्थपक्ष के पति को पहचान लिया और उसकी कामातुर-की-सी चेष्टाएँ और भावभंगियाँ देखकर उसे बड़ा ही दुःख हुआ। नागिला ने साहस करके उनसे पूछा- "मुनिवर! इस गाँव में और अकेले आपका पधारना कैसे हुआ?" मुनि ने उत्तर दिया- "यहाँ एक नागिला नाम की स्त्री है, जो मेरी गृहस्थाश्रम की 1. हेयोपादेय टीका में श्रेणिक के द्वारा अंतिम केवली का प्रश्न पूछते समय ही इसी देव का आना
और उसकी तेजोलेश्या की कांति का पूछने पर भगवंत ने सातवें दिन च्यवन की बात कहने का वर्णन है। 2. हेयोपादेय टीका में भवदत्त और भवदेव ये दो नाम लिखे हैं। प्रचलित भी ये दो नाम है।
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