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जम्बूस्वामी की कथा
श्री उपदेश माला गाथा ३६-३७ शब्दार्थ - कषाय रूपी वृक्ष के फूल और फल दोनों कड़वे और बेस्वाद होते हैं। फूल के कारण व्यक्ति कुपित होता है और फल के कारण पाप का आचरण करता है ॥३६॥
भावार्थ - मनुष्य के जीवन में जब इन्द्रिय-विषयों, कषायों और संयम का भंग होता है, तभी कषाय रूपी पेड़ ऊगता है, जिसमें कड़वे फूल और बेस्वाद फल लगते हैं। फूल के कारण जीव क्रुद्ध होता है, अभिमानी, स्वार्थी
और जिद्दी बनकर दूसरों को मारने आदि के उपायों और अनर्थ का चिन्तन (ध्यान) करता है; दूसरों को मारने-पीटने और सताने आदि से पापकर्म करता है। यही कषाय वृक्ष का फल है। इसीलिए कषाय वृक्ष का फूल (कषाय करते समय) भी कड़वा है और फल (भोगते समय परिणाम) भी कड़वा है। दोनों से आखिरकार नरकगति मिलती है ॥३६।।
संतेऽवि कोऽवि उज्झइ, कोवि असंतेऽवि अहिलसइ भोए । चयइ प्रपच्चएण वि, पभवो दट्ठण जह जंबू ॥३७॥
शब्दार्थ - विषयभोग के साधन होने पर भी कोई उन्हें छोड़ देता है और कोई विषयभोग के साधन अपने पास न होने पर उनको पाने की (मन ही मन) अभिलाषा करता है। कोई दूसरे के निमित्त से (दूसरे को विषयभोग छोड़ते देखकर) विषयभोगों का त्याग कर देता है; जैसे जम्बूकुमार को देखकर प्रभव ने विरक्त होकर विषयभोग छोड़ दिये थे ।।३७।।
भावार्थ - किसी पुरुष के पास भोग के विपुल साधन मौजूद होते हुए भी वह महान् आत्मा उनका त्याग कर देता है, किसी नीचकर्मी के पास साधन कुछ भी न होने पर भी वह संसार के अगणित विषयसुखों की लालसा करता रहता है। और कोई जीव किसी अन्य पुरुष को विषयसुखों के साधन छोड़ते देखकर स्वयं वैराग्य की प्रेरणा पाता है, जागृत हो जाता है और विषयभोगों का त्याग कर देता है। जैसे श्री जम्बूस्वामी का महात्याग देखकर पाँच सौ चोरों के सहित प्रभव नामक चोर ने विषय-भोगों का त्याग कर दिया था।
यहाँ प्रसंगवश जम्बूस्वामी की कथा, उनके पूर्वभव के वर्णन सहित दे रहे हैं
जम्बूस्वामी की कथा एक बार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विचरण करते हुए राजगृह नगर में पधारें। श्रेणिक राजा उन्हें वंदना करने के लिए गया। उस समय प्रथम देवलोक