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श्री उपदेश माला गाथा १५
चन्दनबाला की कथा "यह थोड़े समय में सिद्धगति (मुक्ति में) जाने वाला है; अतः इसे धर्ममार्ग में लगाना चाहिए।" ऐसा विचारकर उसे मिष्टान्न भोजन दिया, और साथ में उपदेश भी। इससे वह बड़ा खुश हुआ और मन में विचार करने लगा-अहो! यह साधु कितने दयालु हैं, इनका मार्ग भी इस जन्म और दूसरे जन्म के लिए बड़ा हितकर है। इस जन्म में मिष्टान्न आदि भोजन मिलेगा और दूसरे जन्म में स्वर्ग आदि सुख मिलेगा। ऐसा विचारकर उस भिक्षुक ने गुरु के पास मुनि दीक्षा ग्रहण की। गुरु ने भी उसे चारित्र में दृढ़ करने के लिए बहुत साधुओं के साथ साध्वी के उपाश्रय में भेजा। अन्य साधु बाहर खड़े रहे और द्रमक (नवदीक्षित साधु) अकेला ही चन्दना साध्वी के उपाश्रय में गया। आर्या चन्दना साध्वी ने नवीन दीक्षित द्रमुक को आते देखकर सम्मुख आकर आदर सत्कारपूर्वक उसे आसन दिया और हाथ जोड़कर खड़ी रही। द्रमक मुनि विस्मित होकर सोचता है-“यह वेश बड़ा कल्याणकारी है। धन्य है इस वेश को; यद्यपि मैं नवदीक्षित हूँ, फिर भी पूज्या चन्दना साध्वी मेरा इस प्रकार का सम्मान कर रही हैं।" साधु साध्वियों का उदार और वात्सल्यपूर्ण व्यवहार देखकर वह धर्म में और ज्यादा दृढ़ हो गया। साध्वी चन्दनबाला ने पूछा "मुनिवर! कहिये आपका यहाँ कैसे पधारना हुआ?" द्रमक मुनि ने कहा-आपकी चर्या जानने के लिए ही मुझे गुरुदेव ने यहाँ भेजा है। चन्दनबाला ने संघ की महत्ता और साधुजीवन की भव्यमहिमा उन्हें वात्सल्य भावपूर्वक समझाई; जिससे उनका मन संयम में स्थिर हो गया और बहुत साल तक मुनि-चारित्र का निरतिचार पालन किया।"
इस दृष्टांत से अन्य साध्वियों को भी मुनिराज़ का इसी तरह विनय करना चाहिए, यह इस कथा का उपनय है ॥१४॥
वरिससयदिक्खियाए, अज्जाए अज्जदिक्खिओ साहू ।
अभिगमण-वंदण-नमसणेण, विणएण सो पुज्जो ॥१५॥ • शब्दार्थ - आज का दीक्षित साधु हो तो भी वह सौ वर्ष की दीक्षित साध्वी के द्वारा अभिगमन (सामने जाना) वंदन और नमस्कार से तथा विनय से पूजनीय है ।।१५।।
भावार्थ - सौ साल की चिरकाल दीक्षित अथवा वृद्धसाध्वी के लिए लघु-मुनि या आज का दीक्षित मुनि हो तो भी वह वंदनीय है। उसे आते देखकर सम्मुख जाना, द्वादशावर्तादि पूर्वक वंदन करना, अन्तरंग वत्सलता से नमस्कार करना, विनय पूर्वक आसन आदि देना चाहिए, क्योंकि एक दिन का भी साधु हो, वह साध्वी के लिए पूजनीय होता है ।।१५।।
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