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(२७) पृष्ठ सं० पंक्ति सं० अशुद्धियां । ८७ १४ आदि दुष्ट १५ . जिससे केश
आते जाते हों ऐसे
शुद्धियां। आदि उनके पुष्ट जिससे उनके केश आते जाते हों अथवा जहाँका आने जानेका रास्ता तंग हो ऐसे नीवको बहुत मजबूत भरे
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बहुत मजबूत मकान चिनवाघे इस तरह गर्भमंदिरमें पादकाएं स्तंभाकार
गर्भमंदिरमें पादुकाएं मानस्तंभाकार
फाल
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०००
इसके बाद आह्वान स्थापना और इसके बाद जिनेन्द्र के चरणोंकी सनिधिकरण कर उस जिनबिंब सुगंधित जलसे प्रक्षालकर आवाहन, की सुगंधित जलसे प्रक्षाल करे। स्थापना और सन्निधिकरण करे। क्रमसे जलसे भरे हुए सुगंधित जलसे, जलसे और इक्षु
रस आदिसे भरे हुए कलशस्थापन
कलशोद्धरण और अभिषेक चोद्धृत्य
चोद्वत्य सर्वोषधि रससे भरे हुए कलशसे सर्वोपधि रससे जिनदेव का उद्दजिनदेवका अभिषेक करे। तन करे। बाई ओर जलमंत्रादिके बाई ओर बनी हुई होमशालामें
जल मंत्र आदिके चारों कोनों पर
ऊपर चौकोन देवभागोंपर छत्रत्रय देवभागोंपर बनी हुई छोटी वेदि
कापर छत्रत्रय उनसे पूर्ववर्ती जो भाग है उनपर उनसे पूर्वमें अर्थात् दोनों ब्रह्म
भागोंके मध्यमें कुंडकी
कुंडोंकी गये थे
जाते हैं व्रतोद्यापन के समय
यज्ञोपवीत संस्कारके समय तध्रुवं
तध्रुवं स रह
इस तरह श्रीजिनपूजन
श्रीजिनस्थापन मध्य देशमें जिनदेवकी मध्य भागमें वास्तुदेवोंकी ब्रह्मदेवकी
ब्रह्म नामके यक्षकी ग्रहबालि
गृहबलि
.१०३
१०४ १०७ ११५
२५ १२
११७ ११८ ११८
२०
११८
११८
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