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(२६) पृष्ठ सं० पंक्ति सं० अशुद्धियां । ५. १३ पुण्य-पापक
मुक्तिका होना गौत
सहज ५३ १७ कोई भी बात सत्य न ठहरेगी
शुद्धियां । पुण्यपापका मुक्तिका होना इत्यादि गांत यह जल ऐसे कितने ही विषय हैं जो समझमें नहीं आते हैं । ऐसी दशामें ये सब असत्य ही ठहरेंगे।
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पौडे
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पैरोंतक
CM -
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पांछ कछौटा लगानेवाला
फछौटा लगाने वाला, कछोटा
न लगाने वाला नीले रंगका या लाल रंगका नीले रंगका शूद्रों द्वारा
कारु शूद्रों द्वारा शूद्रों द्वारा
कारु शुद्रों द्वारा और मंत्रस्नान
और मानसस्नान परातेक या टेढ़ा-मेढ़ा होकर या झुककर आचमन करनेके बाद . ( इतना पद नहीं होना चाहिए) समुग्र
समुद्र विदी
बदी चामिष्टाविंशतिक
चाधै सप्तविंशतिकं शब्दके विद्याके कारण
विद्यासंबंधी ऊपरि
उपरि यक्षी
यक्ष यक्ष
यक्षी उनके तर्पण
ॐ ही अहं जयाद्यष्ट इत्यादि
उनके तर्पण यह उनको नमस्कार ॐ हीं अर्ह असि आ इत्यादि
नमस्कार इन श्लोकों में ऊंच नीच इन श्लोकोंमें ऊंच जातिके मनुष्यों
दोनों तरहके मनुष्योंको न को भी न - करना है।
करना है तथा जो छूने योग्य नहीं हैं उन्हें किसी भी हालतमें न छुवे ।
शब्दोंके
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