Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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पाँच पापोंसे दूर होकर अहिंसादि महावतोंके धारण और पालनको होती है । संयमासंयम अधिकारकी गाथा ही इस अधिकारको गाथा है । संयमके प्राप्त कर लेनेपर भी कषायके उदयानुसार जो परिणामोंका उतार-चढ़ाव होता है उसका प्ररूपण अल्पबहुत्व आदि भेदों द्वारा किया गया है | इस लब्धिका वर्णन चूणिसूत्रकारने अधःकरण और अपूर्वकरणके विवेचन द्वारा किया है, जो अध्यात्मप्रेमी उपशमसम्यक्त्वके साथ संघमासंयम धारण करते हैं उनके तीनों करण होते हैं, पर जो वेदकसम्यकदृष्टि संयमासंयमको धारण करते हैं उनके दो ही करण होते हैं। संयमको धारण करनेके लिये आवश्यक सामग्रीका भी कथन किया गया है।
१४. चारित्रमोहोपशमनाधिकार-इस अधिकारमें प्रथम आठ गाथाएं आती हैं । पहली गाथाके द्वारा उपशमना कितने प्रकारको होती है, किस-किस कर्मका उपशम होता है आदि प्रश्न किये गये हैं। दूसरी गाथाके द्वारा निरुद्ध चारित्रमोहप्रकृतिको स्थिति के कितने भागका उपशम करता है, कितने भागका संक्रमण करता है और कितने भागका उदीरणा करता है इत्यादि प्रश्नोंकी अवतारणा की गयी है। तीसरी गाथाके द्वारा चारित्रमोहनीयका उपशम किसने कालमें किया जाता है उसो उपशमित प्रकृतिको उदोरणा-संक्रमण कितने काल तक करता है इत्यादि प्रश्न किये गये हैं। चौथी गाथाके द्वारा आठ करणोंमेसे उपशामकके कब, किस करणसे व्यछित्ति होती है या नहीं इत्यादि प्रश्नोंका अवतार किया गया है। इस प्रकार चार गाथाओंके द्वारा उपशामकके और शेष चार गाथाओंके द्वारा उपशामकके पतनके सम्बन्धमें प्रश्न किये गये हैं।
१५. चारित्रमोहक्षपणाधिकार-यह अन्तिम अधिकार बहुत विस्तृत है । इसमें चारित्रमोहनीयकर्मके क्षयका वर्णन विस्तारसे किया है । यहाँ यह ध्यातव्य है कि चारित्रमोहनीयका क्षय अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरपके बिना संभव नहीं है । इस अधिकारमें २८ मूलगाथाएं हैं और ८६ भाष्यगाथाएं हैं। इस प्रकार कुल ११४ गाथाओंमें यह अधिकार व्याप्त है। इनमेंसे चार सूत्रगाथाएं अधःप्रवृत्तिकरणके अन्तिम समयसे प्रतिबद्ध हैं 1 इनके आधारपर चूणिसूत्रों और जयषवलामें योग और कषायोंको उत्तरोत्तर विशुद्धिका चित्रण किया गया है। आशय यह है कि चारित्रमोहनीयकर्मको प्रकृतियोंका क्षय किस क्रमसे होता है और किस-किस प्रकृतिके क्षय होनेपर कहाँपर कितना स्थितिबन्ध और स्थितिसत्त्व रहता है इत्यादि बातोंका वर्णन इस अधिकारमें आया है । ध्यान और कषायक्षयको प्रक्रिया भी इस अधिकारमें वर्णित है।
श्रुवघर और सारस्वताचार्य : ४१