Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 426
________________ ३. हिंसा करनेपर भी अहिंसक बना रहता है । ४. प्राणघात न करने पर भी हिंसक हो जाता है । इस प्रकार अनेक भंगों द्वारा हिंसा के अल्पबहुत्वका कथन किया गया है । हिंसाके कारण, मद्य, मांस, मधु और पंचउदम्बर फलोंके त्यागका उपदेश दिया गया है । इस प्रसंग में मद्य, मांस, मधु और पंचउदम्बर फलोंके दोषोंका भी विश्लेषण किया गया है। इसके पश्चात् अनृतका वर्णन आया है। अनृतके अन्तर्गत गर्हित, साक्य और अविचन से सम्मिलित है । वहिवचनोंमें शास्त्रविरुद्ध कहे जानेवाले वचनों को शामिल किया गया है । छेदन-भेदन, मारण, कर्षण, वाणिज्य, चौर्य आदि वचन सावद्यवचन कहलाते हैं । अरतिकर, भीतिकर, खेदकर, बेरकर, शोककर, कलहकर आदि सन्ताप देनेवाले वचन अप्रियवचन कहलाते हैं । स्तेयका विवेचन करते हुए घनके साथ अधिकार अपहरणको भी स्तेय बतलाया है । रागादिकके आवेगसे मैथुनरूप प्रवृत्ति करना अब्रह्म है । इस अब्रह्मके त्यागको ब्रह्मचर्यव्रत कहा है। मूर्छाको परिग्रहलक्षण बतलाकर अन्तरंग और बहिरंग परिग्रहके भेद-प्रभेदोंको निरूपण किया है । पंचतोंके पश्चात् रात्रिभोजनत्यागका महत्त्व प्रतिपादित किया गया है । पञ्चव्रतों का पालन करनेके लिए सात शीलव्रतोंका पालन करना चाहिये । जिस प्रकार परकोटा नगरकी रक्षा करता है, उसी प्रकार तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत पञ्चनतोंकी रक्षा करते हैं। गुणव्रत के तीन भेद बतलाये हैंदिक्त, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत । अनर्थदण्ड के अपध्यान, पापोंपदेश, प्रमादचर्या, हिंसादान और दुःश्रुति इन पाँच भेदोंका स्वरूपसहित विवेचन किया गया है। शिक्षावत के सामायिक, प्रौषधोपवास, अतिथिसंविभाग और भोगोपभोगपरिमाण इन चारोंका विवेचन किया है । चतुर्थं सल्लेखना अधिकरण में संल्लेखनाका स्वरूप, आवश्यकता और उसकी विधिका वर्णन किया गया है। पंचम सकलचारित्रव्याख्यानाधिकारमें मुनियोंके व्रत चरित्रका वर्णन किया है। इसमें द्वादश तप, दशधर्म द्वादश अनुप्रेक्षा, बाईस परिषह्जयका वर्णन किया है। इस प्रकार इस लघुकाय ग्रन्यमें श्रावकधर्मका वर्णन आया है । 'तस्वायंसार + यह ग्रन्थ ९ अधिकारोंमें विभक्त है। प्रथम अधिकार में ५४ पद्य, द्वितीय अधिकार २३८ पद्य, तृत्तीय अधिकार में ७७ पद्य, चतुर्थ अधिकारमें १०५ पद्य, १. यह पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित अनूदित और श्री गणेशप्रसाद वर्णी गन्थमाला काशी द्वारा सन् १९७० में प्रकाशित है । ४०८ तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा

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