Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 463
________________ यह वंश उत्तर या पूर्वोत्तरका निवासी था । ई० सन्की दूसरी शताब्दी के लगभग इम वंशके दो राजकुमार दक्षिण में आये। उनके नाम दडिग और माधव थे । पेर नामक स्थानमें उनकी भेंट जैनाचार्यं सिह्नन्दिसे हुई । सिनन्दिने उनकी योग्यता और शासनक्षमता देखकर उन्हें शासनकार्यं की शिक्षा दी। एक पत्थरका स्तम्भ साम्राज्यदेवीको प्रवेश करनेसे रोक रहा था । सिंहनन्दिको आज्ञासे माधवने उसे काट डाला । सिंह्नन्दिने उन्हें एक राज्यका शासक बना दिया | सिनन्दिका यह आख्यान मैसूर राज्यसे प्राप्त ११२२ ई० के एक अभिलेखमें अंकित है । इस अभिलेख में बताया है कि पद्मनाभ राजाके ऊपर उज्जैन के महीपालने आक्रमण किया तब उसने दडिंग और माधव नामके दो पुत्रोंको दक्षिण की ओर भेज दिया। प्रतिदिन यात्रा करते-करते वे पेरूर नामक स्थानमें पहने। उन्होंने वहीं अपना शिविर स्थापित किया । यहाँ एक सरोवर के निकट चैत्यालय के दर्शन कर उन्होंने उसकी तीन प्रदक्षिणाएं कीं और आचार्य सिंहनन्दिकी वन्दना कर उनके निकट बैठ गये । आचार्यने उन्हें आशीर्वाद दिया । उनकी भक्ति प्रसन्न होकर देवी पद्मावती प्रकट हुई और उसने उन्हें तलवार एवं राज्य प्रदान किया । समस्त राज्य मारने पीने करते हुए कहा "यदि 'तुम अपने वचनको पूरा न करोगे या जिनशासनको साहाय्य न दोगे, दूसरोंकी स्त्रियों का यदि अपहरण करोगे, मद्य- माँसका यदि सेवन करोगे, या नीचों की संगति में रहोगे, आवश्यक होनेपर भी यदि दूसरोंको अपना धन नहीं दागे और यदि युद्ध के मैदान में पीठ दिखाओगे तो तुम्हारा वंश नष्ट हो जायेगा" । सन् १९२९ ई० के एक दूसरे अभिलेख में लिखा है कि सिनन्दि मुनिने अपने शिष्योंको अर्हन्त भगवानकी ध्यानरूपी तीक्ष्ण तलवार भी कृपा करके प्रदान की थी, जो घातिकर्मरूपी शत्रुसैन्यकी पर्वतमालाको काट डालती है । सिंहनन्दिको मूलसंघ कुन्दकुन्दान्त्रय, काणूरगण और मेषपाषाणगच्छका आचार्य तथा दक्षिणवासी बताया है। सिह्नन्दिके प्रभावसे ही गंगराजाओंने जैनधर्मको संरक्षण प्रदान किया था । चतुर्थ शताब्दीसे द्वादश शताब्दी तक अभिलेखोंसे प्रमाणित होता है कि गंगवंशके शासकोंने जैनमन्दिरोंका निर्माण कराया, जैनमूर्तियाँ प्रतिष्ठित करायों, जैनसाधुओंके निवासके लिए गुफाएँ बनवायीं और जैनाचार्योंको दान दिया । एक विरुदावली में सिनन्दि आचा १. Mediaeval Jainism P. 1 तथा जैन शिलालेख संग्रह भाग २, अभिलेख P संख्या २७७ । भूतवर और सारस्वताचार्य ४४५

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