Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 468
________________ गंदियढे करगामे कुमारसेणो य सत्यविण्णाणी कट्ठो दंसणभट्टो जादो सल्लेहणाकाले ।' अर्थात् काष्ठासंघके संस्थापकके रूपमें कुमारसेनका नाम आता है। बताया है कि विक्रम राजाकी मृत्युके ७५३ वर्ष पश्चात् नन्दीतटग्राममें काष्ठासंघ हुआ। इस नन्दीतटग्राममें कुमारसेननामका शास्त्रज्ञ विद्वान् साल्लेखनाके समय दर्शनसे भ्रष्ट होकर, काष्ठासंघी हुआ। कुमारसेनका समय वि० की ८वीं शताब्दी अगवत होता है। वकासूरि ये वज्रसूरि देवनन्दि-पूज्यपादके शिष्य द्राविड़ संघके संस्थापक बकानन्दि जान पड़ते हैं । हरिवंशपुराण में इनके सम्बन्धमें कहा है बसूरेविचारिण्यः सहेखोर्बन्धमोक्षयोः । प्रमाण धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः ।। अर्थात् जो हेतु सहित बन्ध और मोक्षका विचार करनेवाली हैं ऐसी श्री वज्रसूरिकी उक्तियाँ धर्मशास्त्रोंका व्याख्यान करनेवाले गणधरोंकी सक्तियों के समान प्रमाणरूप हैं। इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि वचसूरिके वचन गणघरोंके समान मान्य थे। दर्शनसारके उल्लेखानुसार इनका समय छठी शती प्रतीत होता है। सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुट्ठो । णामेण वज्मणंदी पाहदवेदो महासत्तो। पंचसए छब्बीसे बिक्कमरायस्स मरणपत्तस्स ! दक्षिणमहराजादो दाविडसंघो महामोहो || यशोभद्र प्रखर ताकिकके रूपमें जिनसेनने इनका स्मरण किया है। आदि राणमें बताया है विदुष्विणीषु संसत्सु यस्य नामापि कीर्तितम् । निखर्वयति सद्गर्व यशोभद्रः स पातु नः । १. दर्शनसार, गाथा ३९ ।। २. वही, गाथा २४ । ३. वहीं, गाथा २८ । ४, आदिपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ काशी संस्करण, १।४६ . ४५० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा

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