Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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रचनाएँ
नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवकी दो ही रचनाएँ उपलब्ध हैं - १. लघुद्रव्यसंग्रह और २. बृहद्रव्यसंग्रह ।
लघुद्रव्यसंग्रह
इसकी प्रथम गाथा में ग्रन्थकारने जिनेन्द्रदेव के स्तवनके पश्चात् प्रन्थ में वर्णित विषयका निर्देश करते हुए बताया है कि जिसने छह द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सप्ततत्त्व और नवपदार्थों का तथा उत्पादव्ययधीव्यका कथन किया है, वे जिन जयवन्त हों । स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ में षद्रव्य, पाँच अस्तिकाय, साततत्त्व, नवपदार्थ और उत्पाद व्यय श्रीव्य और ध्यानका कथन किया गया है । पाँच अस्तिकाय तो छह द्रव्योंके अन्तर्गत ही हैं । यतः जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल से छह द्रव्य हैं और कालके अतिरिक्त शेष पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी होनेसे अस्तिकाय कहे जाते हैं । इसी तरह जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप ये नौ पदार्थ हैं। इनमेंसे पुण्य-पापको पृथक् कर देनेपर शेख तत्त्व हैं। इस प्रकार इस ग्रन्थ में द्रव्य तत्त्व, पदार्थ और अस्तिकायोंका स्वरूप बतलाया गया है ।
लघुद्रव्यसंग्रह में कुल २५ गाथाएँ हैं । पहली गाथा में वक्तव्य विषय के निर्देशके साथ मंगलाचरण है। दूसरी गाथा में द्रव्यों और अस्तिकायोंका तथा तीसरी गाथामें तत्त्वों और पदार्थोकर नाम निर्देश किया है। ग्यारह गाथाओं में द्रव्योंका पाँच गाथाओं में तत्त्वों और पदार्थों का एवं दो गाथाओं में उत्पाद, व्यय और श्रीव्यका कथन किया है । उत्तरवर्ती दो गाथाओंमें ध्यानका निरूपण आया है । २४ ची गाथा में नमस्कार और २५ वीं गाथा में नामादि कथन है । संक्षेपमें जैन तत्त्वज्ञानकी जानकारी इस ग्रन्थसे प्राप्त की जा सकती है।
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द्रव्यों के स्वरूपको बतलानेवाली गाथाओं में गाथा - संख्या ८, ९, १० और ११ का पूर्वार्द्ध और १२ तथा १४ गाथाएं बृहद्रव्यसंग्रह में भी पायी जाती हैं। शेष गाथाएँ भिन्न हैं । ब्रह्मदेवके अनुसार इसमें एक गाथा कम है । सम्भव है कि लघुव्यसंग्रहको प्राप्त प्रतिमें एक गाथा छूट गयी हो ।
बृहदद्रव्यसंग्रह
बृहद्रव्यसंग्रह और पंचास्तिकायको तुलना करनेपर ज्ञात होता है कि पंचास्तिकायकी शैली और वस्तुको द्रव्यसंग्रहकारने अपनाया है, जिससे उसे लघुपंचास्तिकाय कहा जा सकता है। पंचास्तिकाय भी तीन अधिकारोंमें विभक्त है और द्रव्यसंग्रह भी सीन अधिकारोंमें। पंचास्तिकायके प्रथम अधिकारमें द्रव्यों का, द्वितीयमें नौ पदार्थों का और तृतीयमें व्यवहार एवं निश्चय
४४२ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य परम्परा