Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 459
________________ मृत दोनों ही टीकाओं में उल्लेख किया है और वसुनन्दिने इन सिद्धान्तिदेवका अपने गुरुके रूप में स्मरण किया है तथा इन्हें श्रीनन्दिका प्रशिष्य एवं नयनन्दिका शिष्य बतलाया है। ये नयनन्दि यदि 'मुदंसणचरिउ' के रचयिता हैं, जिसकी रचना उन्होंने भोजदेवके राज्यकालमें वि० सं० ११०० में की थी, तो नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव नयनन्दि से कुछ ही उतरवर्ती और वसुर्नान्दमे कुछ पूर्ववर्ती, अर्थात् वि० सं० ११२५ के लगभगके विद्वान सिद्ध होते हैं। पंडित आशाधरजी ने द्रव्यसंग्रहकार नेमिचन्द्रका उल्लेख किया है । अतएव वसुनन्दि सिद्धान्तदेव के गुरु ही होगे। समय- विचार नयनन्दिने अपना 'सुदंसणचरिउ वि० सं० ११०० में पूर्ण किया है। अतः नयनन्दिका अस्तित्व समय वि० सं० ११०० है । यदि इनके शिष्य नेमिचन्द्रको इनसे २५ वर्ष उत्तरवर्ती माना जाय तो इनका समय लगभग वि० सं० ११२५ सिद्ध होता है । इनके शिष्य वसुनन्दिका समय वि० सं० १९५० माना जाता है । अतएव नयनन्दि और वसुनन्दिके मध्य होनेके कारण नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवका समय वि० सं० ११२५ के आस-पास होना चाहिये । ब्रह्मदेवके अनुसार यह ग्रन्थ भोजके राज्यकाल अर्थात् वि० सं० की १२वीं शताब्दी ( ई० सन् ११वीं शती) में लिखा गया है । अतएव द्रव्यसंग्रहके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवका समय वि० सं० की १२वीं शताब्दीका पूर्वार्ध है 1 अर्थात् ई० सन्की ११वीं शतीका अन्तिम पाद है। डॉ० दरबारीलाल कोठियाने अपना फलितार्थ उपस्थित करते हुए लिखा है "यदि नयनन्दिके शिष्य नेमिचन्द्रको उनसे अधिक से अधिक २५ वर्ष पोछे माना जाय तो वे लगभग वि० सं० ११२५ के ठहरते हैं।" द्रव्य संग्रहकी रचना आश्रमनगरमें बतलाई गयी है। यह आश्रमनगर 'आशा रम्यपट्टण', 'आश्रमपत्तन', 'पट्टण' और 'पुटभेदन' के नामसे उल्लिखित | दीपचन्द्रपाण्डया और डॉ० दशरथ शर्माक अनुसार इस नगरको स्थिति राजस्थान के अन्तर्गत कोटासे उत्तर-पूरबकी ओर लगभग नौ मीलकी दूरी पर बूंदोसे लगभग तीन मोलको दूरीपर चम्बल नदीपर अवस्थित वर्तमान 'केशवरायपाटन' अथवा पाटनकेशवराय ही है । प्राचीनकाल में यह राजा भोजदेव के परमार साम्राज्य के अन्तर्गत मालवा में रहा है। अपनी प्राकृतिक रम्यता के कारण यह स्थान आश्रमभूमि (तपोवन) के उपयुक्त होनेके कारण आश्रम कहलानेका अधिकारी हैं। १. द्रव्यसंग्रह प्रस्तावना, पृ० ३६ । श्रुतवर और सारस्वताचार्य : ४४१

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