Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 457
________________ नेमिचन्द्र मुनि अभी तक यह धारणा चली आ रही थी कि द्रव्यसंग्रह या बृहद्रव्यसंग्रहके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती हैं । पर अब नये प्रमाणोंके आलोकमें यह मान्यता परिवर्तित हो गयी है। अब समीक्षक विद्वानोंका अभिमत है कि द्रव्यसंग्रहके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीसे भिष अन्य कोई नेमिचन्द्र हैं, जिन्हें नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव या मिचन्द्रभुनि कहा गया है। बृहद्रयसंगहके टीकाकार ब्रह्मदेवने ग्रन्थका परिचय देते हुए लिखा है__"अथ मालवदेश धारानामनगराधिपति राजभोजदेवाभिधानकलिकालचक्रवर्तिसम्बन्धिनः श्रीपालमण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याश्रमनामनगरे श्रीमुनिसुव्रततीर्थकरचैत्यालये शुद्धात्मद्रव्यसंवित्तिसमुत्पन्नसुखामृतरसास्वादविपरीतनारकादिदुःखभयभीतस्य परमात्मभावनोत्पन्नसुखसुधारसपिपासितस्य भेदाभेदरत्नत्यभावनाप्रियस्य भव्यवरपुण्डरीकस्य भाण्डागाराद्यनेकनियोगाधिकारिसोमाभिधानराजश्रेष्ठिनो निमित्तं श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवैः पूर्व षड्विशतिगाथाभिलघुद्रव्यसंग्रहं कृत्वा पश्चाद्विशेषतत्त्वपरिज्ञानार्थ विरचितस्य बृहद्रव्यसंग्रहस्थाधिकारशुद्धिपूर्वकत्वेन वृत्तिः प्रारभ्यते ।"' ___ मालवदेशमें धारानगरीका स्वामी कलिकालसर्वज्ञराजा भोजदेव था । उससे सम्बद्ध मण्डलेश्वर श्रीपालके आश्रमनामक नगरमें श्री मुनिसुव्रतनाथ तीर्थकरके चैत्यालयमें भाण्डागार आदि अनेक नियोगोंके अधिकारी सोमनामक राजश्रेष्ठिके लिए श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवने पहले २६ गाथाओंके द्वारा लघुद्रव्यसंग्रह नामक ग्रन्थ रचा। पोछे विशेषतत्त्वोंके ज्ञानके लिये बृहद्व्यसंग्रह नामक ग्रन्थ रचा। उसकी वृत्तिको मैं प्रारम्भ करता हूँ। इस उद्धरणसे स्पष्ट है बृहद्रव्यसंग्रह और लघुद्रव्यसंग्रहके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव हैं। श्री डॉ० दरबारीलालजी कोठियाने द्रव्यसंग्रहकी प्रस्तावनामें नेमिचन्द्र नामके विद्वानोंका उल्लेख किया है। इनके मतानुसार प्रथम नेमिचन्द्र गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार और क्षपणासार जैसे सिद्धान्त ग्रन्थोंके रचयिता हैं। इनकी उपाधि सिद्धान्तचक्रवर्ती थी और गंगवंशी राजा राचमल्लक १. बृहद्व्य संग्रह, दिल्ली संस्करण, वि० सं० २०१०, पृ० १-२ । २. श्री दरबारीलाल कोठिया द्वारा सम्पादित द्रव्यसंग्रह, प्रस्तावना पृ० २८, श्री गणेश प्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी। श्रुतचर और सारस्वताचार्य : ४३९

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