Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 438
________________ यह समय नेमिचन्द्रके गुरु इन्द्रनन्दिके साथ बिल्कुल संगत बैठता है, पर इन्होंने अपनेको वप्पनन्दिका शिष्य कहा है । बहुत सम्भव है कि इन इन्द्रनन्दिने यप्पनन्दिसे दीक्षा ली हो और अभयनन्दिसे सिद्धान्तग्रन्थोंका अध्ययन किया हो । .. आचार्य नेमिचन्द्रका शिष्यत्व चामुण्डरायने ग्रहण किया या । यह चामुण्डराय गंगवंशी राजा राचमल्लका प्रधानमन्त्री और सेनापति था। उसने अनेक युद्ध जीते थे और इसके उपलक्ष्य में अनेक उपाधि प्राप्त की थी। यह वीरमार्तण्ड कहलाता था। गोम्मटसारमें 'सम्मतरयणनिलय'–सम्यक्त्वरत्ननिलय, ''गुणरयणभूषणं-गुणरलभूषण', 'सत्ययुधिष्ठिर'३ 'देवराज आदि विशेषणोंका प्रयोग किया है । इन धामुण्डरायने श्रवणबेलगोला (मैसूर) में स्थित विन्ध्यगिरि पर्वसपर बाहलि स्वामीको ५७ फीट ऊँची अतिशय मनोश प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी । बाहुबलि भगवान् ऋषभदेवके पुत्र थे । उन्होंने बड़ी कठोर सपस्या की थी। उनकी स्मृति में उनके बड़े भाई चक्रवर्ती भरतने एक प्रतिमा स्थापित करायी थी। वह कुक्कुटसपोंसे व्याप्त हो जाने के कारण कुक्कुटजिनके नामसे प्रसिद्ध थी। उत्तर भारतकी इस मूर्तिसे भिन्नता बतलानेके लिए चामुण्डरायके द्वारा स्थापित मूति 'दक्षिणकुक्कुटजिन' कहलायो। गोम्मटसार कर्मकाण्डमें बताया है जेण विणिम्मियपडिमावयणं सव्वट्ठसिद्धिदेवेहि । सध्वपरमोहिजोगिहि दिछु सो गोम्मटो जयउ ।। गोम्मटसंगहसुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य । गोम्मटरायविणिम्भियदक्षिणकुक्कडजिणो जयउ !' इन दोनों गाथाओंसे स्पष्ट है कि चामुण्डरायने गोम्मट स्वामोको जो प्रतिमा विन्ध्यगिरि पर्वतपर स्थापित को उसके मुखका दर्शन सर्वार्थसिद्धिके देवोंने किया। इससे यह ध्वनित होता है कि विन्ध्यगिरिपर्वतकी ऊँचाईके कारण गोम्मटस्वामीको मूर्ति अधिक ऊंची दिखलायी पड़ती थी, जिससे १. कर्मकाण्ड, गाथा १ । २. जीवकाण्ड, गाथा ।। ५. कर्मकाण्ड, गाथा ४५ ।। ४. वहीं, गाथा २५८। ५. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा ९६९ । ६. वही, गाथा ९६८ । ४२० : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा

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