Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 453
________________ चन्द्रके पुरुषापंसिद्धयुपायके अनेक पद्य उद्धृत किये हैं । अतएव वि० सं० १०५० के पश्चात् नरेन्द्रसेनका होना स्वाभाविक है। सिद्धान्तसारपर अमितगतिके श्रावकाचारका भी प्रभाव सम्भव है । सिद्धान्तसारके चतुर्थ अध्यायमें निदानके प्रशस्त और अप्रशस्त मेदोंका कथन किया है । यह सन्दर्भ अमितगतिका अनुकरण जान पड़ता है । अमितगति-श्रावकाचारके सप्तम अध्यायके २०,२१ और २२खें पद्यका सिद्धान्तसार चतुर्थ अध्यायके पद्य २४६-५० का मिलान करनेपर अमितगति-श्रावकाचारके उक्त पद्योंपर स्पष्टतः प्रभाव ज्ञात होता है। अमितगति माथुरसंघके बाचार्य थे, यह पहले कहा जा चुका है। अतएव नरेन्द्रसेन भी अमितगतिके समान काष्ठासंघी ही प्रतीत होते हैं। काष्ठासंघमें नन्दितट, माथुर, बागड़ और लाटवागड़ या झाडवागड ये चार प्रसिद्ध गच्छ हुए हैं, ऐसा सुरेन्द्रकोतिविरचित पट्टावलीसे झात होता है काष्ठासंघो भुवि ख्यातो जानन्ति नृसुरासुराः । तत्र गच्छाश्च चत्वारो राजन्ते विश्रुताः क्षिती ॥ श्रीनन्दितटसंज्ञश्च माथुरो वागड़ाभिषः । लाहनासह इलोने विख्याताः मितिमण्डले ।' श्री डॉ० कोठियाजीने अत्यन्त विस्तारपूर्वक इनके वंश और समयपर विचार किया है। . नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा विरचित गोम्मटसार तथा त्रिलोकसारका मी उपयोग नरेन्द्रसेनने अपनी रचनामें किया प्रतीत होता है। उनके जीवतत्त्वविषयक वर्णनमें उक्त ग्रन्थों के अनेक गाथासूत्र अनुवाद जैसे प्रतीत होते हैं। सिद्धान्तसारसंग्रहके चतुर्थ अध्यायमें केवलि-भुक्ति और स्त्रो-मुक्तिका खण्डन है, जो आचार्य प्रभाचन्द्रके प्रमेयकमलमार्तण्डका अनुसरण है। प्रभाचन्द्रका समय वि० सं० १०३७-११२२ निर्धारित किया है। इससे भी नरेन्द्रसेन वि० सं० १२वों शतीके विद्वान् सिद्ध होते हैं। रचना इनकी एक ही रचना उपलब्ध है-सिद्धान्तसारसंग्रह। यह गन्ध १२अध्यायोंमें विभाजित है और संस्कृत-भाषामें अनुष्टुप छन्दोंमें लिखा गया है। प्रत्येक अध्यायके अन्तमें छन्दपरिवर्तन हुआ है और पुष्पिकामें सिद्धान्तसारसंग्रह-- यह नाम दिया गया है। १. जनसाहित्यका इतिहास पृ० २७७ पर उढ़त । २. प्रमाणप्रमेयकालिका, प्रस्तावना, पृ. ५०-५९ । श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ४३५

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