Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 427
________________ पंचम आंधकारमें ५४ पद्य, षष्ठ अधिकारमें ५२ पद्य, सप्तम अधिकारमें ६० पद्य, अष्टम अधिकारमें ५५ पद्य और नवम अधिकारमें २३ पद्य हैं । इन अधिकारोंके नाम क्रमशः निम्न प्रकार है-- १. मोक्षमार्गाधिकार---जीवाधिकार २. जीवतत्त्वनिरूपणाधिकार ३. अजीवाधिकार, ४ आस्रवत्तत्त्वाधिकार, ५. बन्धतत्वाविकार, ६. संवरतत्त्वाधिकार, ७. निर्जरातत्त्वाधिकार, ८. मोक्षतत्त्वाधिकार, ९ उपसंहार, इस ग्रन्थको बाचायने मोक्षमार्गका प्रकाश करनेवाला दीपक बतलाया है; क्योंकि इसमें युक्ति और आगमसे सुनिश्चित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका स्वरूप प्रतिपादित किया है। सम्यग्दर्शनादिका स्वरूप बतलाते हुए जोवादितत्त्वोंका विशद विवेचन किया है। जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व बतलाये हैं। इनमें जीवतत्त्व उपादेय है और अजीवतत्त्व हेय है । अजीवका जीवके साथ सम्बन्ध क्यों होता है, इसका कारण बतलानेके लिए आस्रवका और अजीबका सम्बन्ध होनेसे जीवकी क्या दशा होती है, यह बतलानेके लिए बन्धका कथन किया है । हेय-अजीवतत्त्वका सम्बन्ध जीवसे किस प्रकार छूट सकता है, यह बतलाने के लिए संवर और निर्जराका कथन तथा अजीवतत्त्वका सम्बन्ध छटनेपर जीवकी क्या दशा होती है, यह दिखलानेके लिए मोक्षतत्त्वका कथन किया है । इन सात तत्त्वोंके सम्यक्-परिज्ञानके लिए नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपोंका तथा प्रमाण और नयोंका विस्तारसे वर्णन किया है। प्रथम अधिकारके यन्तमें निर्देश स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान तथा सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्प-बहुत्व अनुयोगोंका भी उल्लेख किया है। द्वितीय अधिकारमें जीवके औपशमिक, झायिक, क्षायोपमिक, औदायिक और पारिणामिक इन पांच स्वतत्त्वोंका वर्णन किया गया है । जीवका लक्षण बतलानेके लिए उपयोगका निरूपण पाया है। उपयोगके साकार और अनाकारके भेदसे दी मेद बतलाते हुए शानोपयोग और दर्शनोपयोगका वर्णन किया है। श्रतधर और सारस्वताचार्य । ४०९

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