Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप है और द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा सदा अद्वितीय रहने वाला एक ज्ञानी आत्मा ही मोक्ष मार्ग है ।
विषय - स्रोत
यों तो तत्त्वार्थसार तत्त्वार्थसूत्रका ही व्याख्यान अथवा सार है, फिर भी इसके विषय स्रोत गृद्धपिच्छाचार्यके तत्त्वार्थ सूत्रके अतिरिक्त पूज्यपादकी सर्वार्थसिद्धि, अकलङ्कदेव का तत्त्वार्थवात्तिक, प्राकृतपंचसंग्रह आदि ग्रन्थ हैं ! प्रथम अधिकार तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर ही रचा गया है ! द्वितीय अधिकारको विषयवस्तुका आधार पंचसंग्रह और तत्त्वार्थवार्तिक है । तत्त्वार्थसूत्रके द्वितीय तृतीय और चतुर्थ अध्याय में वर्णित समस्त प्रमेयोंको तत्त्वार्थसारके द्वितीय अधिकार में समाविष्ट किया गया है । सर्वार्थसिद्धिसे भी अनेक विषय गृहीत है ।
तृतीय अधिकारमें वर्णित अजीवतत्त्व और षद्रव्योंके निरूपणका आधार तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थवार्तिकका पञ्चम अध्याय है ।
चतुर्य अधिकरण के प्रमेयोंका स्रोत तत्वार्थसूत्रके षष्ठ और सप्तम अध्याय हैं । अनेक प्रमेय इन्हीं अध्यानों पर औरर्थसिद्धिसे
भी संगृहीत हैं । पञ्चम अधिकारका आधार तत्त्वार्थसूत्र और उससे सम्बन्धित टीकाओंका अष्टम अध्याय है । अष्टम अधिकार के प्रमेय तत्त्वार्थं वातिकसे ग्रहण किये गये हैं । यहाँ हम तुलना द्वारा अपने उपर्युक्त कथनको पुष्टि करते हैं
जवणालियामसरीचंदद्ध अदमुत्तफुल्लतुल्लाई । इंदियठाणाई फासं पुण यवनालमसू रातिमुक्ते न्द्व समाः श्रोत्राक्षिप्राणजिह्वाः स्युः स्पर्शनं
गठाणं ||१|६५॥
क्रमात् । नैकसंस्थितिः ॥ २५० ॥
कुंथुपिपोलयमंकुणविच्छियजूविदगोवगोम्हीया ।
उत्ति गमट्टियाई
- पंचसंग्रह
खुल्ला चराडसंखा अंक्खुणहअरिगा य गंडोला ।
कुक्खिकमिसिपिआई गेया वेइंदिया जीवा ॥ १७० ॥ - पंचसंग्रह शम्बूकः शंखशुक्तिर्वा कुक्षिक्रम्यादयश्चैते द्वीन्द्रिया: प्राणिनो मताः ॥२५३॥
गण्डूपदकपर्दकाः ।
त० सा०, अधिकार-२
त० सा०, अधिकार-२
या तेइंदिया जीवा ॥१॥ ७१ ॥ - पंचसंग्रह
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ४११