Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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शरीरानुविधायित्वे तदभावाद्विसर्पणप्रसङ्ग इति चेत्, न, कारणाभावात्।।१३।।
-तत्त्वार्थवार्तिक पृ०-७४३ गरीराविधायित्वे तद्भावाद्विसर्पणम् । लोकाकाराप्रमाणस्य तावन्नाकारणत्वतः।।
-तत्वार्थसार १६ दुष्टत्वाच्च निगलादिवियोगे देवदत्ताद्यवस्थानवत् ।
–तत्वार्थवातिक पृ०-६४४ कस्यचिच्छृङ्खलामोक्षे तत्रावस्थानदर्शनात् । अवस्थानं न मुक्तानामूद्रवज्यात्मकत्त्वतः ॥
- तत्त्वार्थसार 1 ८१९ समयसार-कलश
समयसार-कलश यर्थार्थतः कुन्दकुन्दके समयसारपर कलशरूपमें लिखा गया है। इसका विषय-वर्गीकरण भी कुन्दकुन्दके विषयके समान ही है। इसमें कुल २७८ पद्य हैं, जो निम्न अधिकारों में विभक्त हैं
१. पूर्वरङ्ग २. जीवाजीवाधिकार ३. कर्तृकर्माधिकार ४. पुण्यपापाधिकार ५. आस्रवाधिकार ६. संवराधिकार ७. निर्जराधिकार ८. बन्धाधिकार ९. मोक्षाधिकार १०. सर्वविशद्धज्ञानाधिकार ११. स्याद्वादाधिकार १२. साध्य-साधकाधिकार आरम्भमें ही आत्म-तत्त्वको नमस्कार करते हुए बताया है
नमः समयसाराय स्वानुभत्या चकासते ।
चित्स्वभावाच भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे ॥ --पद्य-१ । मैं समयसार-समस्त पदार्थों में श्रेष्ठ उस आत्मतत्त्वको नमस्कार करता हूँ, जो स्वानुभूतिसे स्वयंप्रकाश है, चैतन्यस्वभाववाला है, शुद्ध सत्ता-रूप
श्रुतषर और सारस्वताचार्य : ४१३