Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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नारायण और बलभद्रके प्रेम-सौहार्दकी चर्चा स्वर्गलोक तक व्याप्त हो गयी। अतएव परीक्षार्थ दो देव अयोध्या आये और लक्ष्मणसे गमके मरणका असत्य समाचार कहा। लक्ष्मण सुनते ही निष्प्राण हो गये, इस समाचारसे राम अत्यन्त दुःखित हये और लक्ष्मणके मोहमें उनके शवको लिये हुए छः मास तक घूमते रहे । अन्तमें कृतान्सवको जीवने, जो स्वर्ग में देव हुआ था, रामको समझाया। रामने लक्ष्मणके शवको अन्त्येष्टि क्रिया की और राम जिनदीक्षा लेकर तपश्चरण द्वारा मोक्ष पधारे। समीक्षा
इस कथावस्तमें घटनाओं और डाख्यानों का नियोजन बड़े ही सुन्दररूपमें किया गया है। चरित-काव्यको सफलताके लिए कथानकका जेसा गठन होना चाहिये वैसा इस ग्रन्थमें उपलब्ध है। कालक्रमसे विशृंखलित घटनाओंको रोढ़की हड्डीके समान दृढ़ और सुसंगठित रूपमें उपस्थित किया है। रामको मलकथाके चारों ओर अन्य घटनाएं लताके समान उगती, बढ़ती और फैलती हुई चली हैं। कथानकोंका उतार-चढ़ाव पर्याप्त सुगठित है। पात्रों के भाग्य बदलते हैं । परिस्थितियाँ उन्हें कुछसे कुछ बना देती हैं । वे जीवनसंघर्ष में जूझकर धर्षणशील रूपको अवतारणा करते हैं। निस्संदेह रविषेणने कथानकसूत्रोंको कलात्मक ढंगसे संजोया है । पारितको कथावस्तुमें निम्नलिखित तत्त्व उपलब्ध हैं(क) योग्यता (ख) अवसर (ग) सत्कार्यता
(घ) रूपाकृति योग्यता
कथानकको अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों की ओर मोड़ना योग्यताके अन्तर्गत आता है। रावणद्वारा 'दशरथ-जनक-संतति विनाशका कारण होगी' ऐसी शंका होने पर उनके विनाशकी योजना, साहसगति विद्याधर द्वारा सुग्रीवका वेष बनाकर उसके राज्य पर आधिपत्य करना, रामके वनवासमें छायाके समान लक्ष्मण द्वारा भाईकी सेवा करना आदि प्रसंगोंके गठनमें कविने योग्यतातत्त्वका समावेश किया है। रावणका राम-लक्ष्मणको बलिष्ठ समझ अपने भाई एवं पुत्रोंके बन्दो होने पर विजयप्राप्त्यर्थ बहुरूपिणी विद्याको सिद्ध करनेके लिए प्रस्तुत होना कथानकको प्रतिकूलसे अनुकूल परिस्थितियोंकी ओर
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : २८५