Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
अभिलेखों में वर्णित जिनसेनका व्यक्तित्य
श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंमें जिनसेनके उल्लेख अनेक स्थानों पर आये हैं। अभिलेखसंख्या ४७, ५०, १०५ और ४२२ में जिनसेनका निर्देश आया है। मेषचन्द्रप्रशस्तिमें लिखा है"सिना जिम वोरसेगा TETTER.मा-मस्कारः !"" जोयाज्जगत्यां जिनसेनसूरिय॑स्योपदेशोज्जवलदपणेन । व्यक्तीकृतं सर्वमिदं विनेयाः पुण्यं पुराणं पुरुषा विदन्ति ।। विनय भरण-पात्रं भव्यलोकैकमित्रं विबुधनुतचरित्रं तद्गणेन्द्राग्रपुत्र । विहितभुवनभद्रं वीतमोहोनिद्रं विनमत गुणभद्रं तीर्णविधासमुद्रं ॥
इन दोनों पद्योंमें जिनसेन और गुणभद्र दोनोंकी प्रशंसा की गयी है । जिनसेनके उपदेशसे गुणभद्रने अवशिष्ट आदिपुराणको पूर्ण किया और उत्तरप्राणको रचना की है । अभिलेख संख्या ४२२ में जिन जिनसेनका नाम आया है वे आचार्य जिनसेन द्वितीयसे भिन्न कोई भट्रारक हैं। अतः अभिलेखोंसे यह स्पष्ट है कि जिनसेन द्वितीय सिद्धान्त, पुराण और काव्यरचनामें अत्यन्त पटु थे। इनकी कविता-निझरिणीके सीकरोंसे सन्तुष्ट भव्यजन आनन्दमें मग्न होने लगते हैं । सरस्वतीका ग्रह लाड़ला अपने युगका महान् विद्वान् और आचार्य है ।
अभिलेख में जो जिनसेनके उपदेशको बात कही गयी है उसकी पुष्टि महापुराणके मङ्गलपद्योंसे भी होती है । उन्होंने मङ्गलाचरणमें ही यह निर्देश कर दिया है कि यदि मेरे द्वारा यह ग्रन्थ पूर्ण न हो सके तो तुम (गुणभद्र) इसे पूर्ण करना। अतः अभिलेखोंका सम्बन्ध जिनसेनाचार्यके साहित्यके साथ भी घटित हो जाता है । समय-विचार
हरिवशपुराणके रचयिता जिनसेन प्रथमने वीरसेन और जिनसेनका उल्लेख किया है । उन्होंने लिखा है
जितात्मपरलोकस्य कवीनां चक्रवर्तिनः । बीरसेनगुरोः कीतिरफलकावभासते॥ याऽमिताभ्युदये पायें जिनेन्द्रगुणसंस्तुतिः । स्वामिनो जिनसेनस्य कीर्ति सङ्कीर्तयत्यसौ ।।
१. जनशिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेख ४७, पृ० ६२, पद्य ३० । २. वहीं, अभिलेख-१०५, पृ० १९९, पद्य २२-२३ ।
३३८ : तीर्घकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा