Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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स्वतन्त्र पदार्थ न माननेमें दोष एवं ईश्वर-परीक्षाका उपसंहार आदि विषय वर्णित हैं।
कपिल-परीक्षाके अन्तर्गत कपिलके मोक्षमार्गोपदेशकत्वका निरास, प्रधानके मुक्तामुक्तत्वको कल्पना और उसकी समीक्षा एवं प्रधानके मोक्षमार्गोपदेशकत्वका समालोचन आया है।
सुगत-परीक्षामें सुगतके आप्तत्वका परीक्षण किया गया है । इस प्रकरण में सगतके मोक्षमार्गोपदेशकत्वका निराकरण, सौत्रान्तिकोंके मतको समीक्षा, योगाचार--संवेदनाद्वैत और चित्राद्वैतका समालोचन विस्तारपूर्वक किया गया है।
परमपुरुष-परीक्षाके अन्तर्गत ब्रह्माद्वैत-प्रतिभाससामान्य-अद्वैतको समीक्षा आयी है। ___ अहंत्सर्वसिद्धि-प्रकरणमें प्रमेयत्वहेतुसे सामान्यसर्वज्ञकी सिद्धि की गयी है। सर्वज्ञाभाववादी भट्टके मतको उपस्थितकर उसके मतका निराकरण किया गया है। बायकासातुसे मालो गरि किला है और पुष्टिके लिए प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, आगम और अभाव प्रमाणके द्वारा सर्वज्ञके बाधकत्वका निरास किया गया है। ____ अर्हत-कर्मभूभृतभेतृत्व-सिद्धिप्रसङ्गमें सञ्चित और आगामी कर्मोंके निरोधका कारण संवर और निर्जराको सिद्ध किया है। इस सन्दर्भमें नैयायिक, वैशेषिक और सांख्य द्वारा अभिमत कर्मके स्वरूपका विवेचन कर उसकी पौद्गलिकता सिद्ध की गयी है। ___ अर्हन्तको मोक्षमार्गका नेता सिद्ध करते हुए मोक्ष, आत्मा, संवर, निर्जरा
आदिके स्वरूप और भेदोंका प्रतिपादन किया है। नास्तिक मतका प्रतिवाद कर मोक्षमार्गका स्वरूप और उसके प्रणेताको सर्वज्ञ सिद्ध किया गया है। यह ग्रन्थ निम्नलिखित प्रकरणों में विभक्त है.--
१. परमेष्ठीगुणस्तोत्र २. परमेष्ठोगुणस्तोत्रका प्रयोजन ३. ईश्वरपरीक्षा ४, कपिलपरीक्षा ५. सुगतपरीक्षा ६. परमपुरुषपरीक्षा या ब्रह्मात्तिपरीक्षा
७. अर्हत्सर्वज्ञसिद्धि ३५४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आनाय-परम्परा