Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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५. चाक-शासन-परीक्षा । ६. बौद्ध-शासन-परीक्षा। ७. सेश्वरसांख्य शासन-परीक्षा । ८. निरीश्वरसांख्य-शासन-परीक्षा । ९. नैयायिक-शासन-परीक्षा । १०. वैशेषिक-शासन-परीक्षा। ११. माट्ट-शासन-परीक्षा। १२. प्रभाकर-शासन-परीक्षा। १३. तत्त्वोपप्लव-शासन-परीक्षा ! १४. अनेकान्त-शासन-परीक्षा ।
उपर्युक्त शासनोंको दो श्रेणियोंमें विभक्त किया गया है--(१) असवादी या अभेदवादो और (२)द्वतवादा या भेदवादों। अद्वैतवादा सिद्धान्तोंमें एक तत्वको प्रमुखता है और ससारके समस्त पदार्थ उस तत्त्व के ही रूपान्तर हैं। द्वैतवादो वे सम्प्रदाय हैं जो एक से अधिक तत्व मानते हैं । नैयायिक, वैशेषिक चार्वाक और बुद्ध आदि दर्शन एकाधिक तत्वोंको महत्त्व देनेके कारण द्वैतवादी कहे जाते हैं।
पुरुषाद्वैतकी परीक्षा करने समय अनुमान द्वारा पूर्वपक्ष स्थापित किया है-ब्रह्मएक है, अद्वितीय है, अखण्ड ज्ञानानन्दमय है, सम्पूर्ण अवस्थाओंको व्याप्त करनेवाला है, प्रतिभासमात्र होनेसे । यतः एक ही ब्रह्म अनेक पदाथों में जलम चन्द्रमाकी तरह भिन्न-भिन्न प्रकारसे दिखलाई देता है, इसी प्रकार पृथ्वी आदि ब्रह्माविवर्त हैं, भिन्न तत्त्व नहीं। अतएव चराचर संसारको उत्पत्ति ब्रह्मसे होता है। इस प्रकार पूर्वपथको स्थापना कर उत्सरमें बताया है कि ब्रह्माद्वेत प्रत्यक्षविरुद्ध है। प्रत्यक्षसे बाह्य अर्थ परस्परभिन्न और सत्य दिखलायो पड़ते हैं, अतएव ब्रह्माद्वैत नहीं बन सकता। इस तरह प्रतिभासमानहेतुमें अनेक दोषोंका उद्भावन कर पुरुषाद्वैतकी समीक्षा की गयी है। __ शब्दाद्वंतमें भी ब्रह्माद्वैतके समान दोष आते हैं । विज्ञानाद्वैतकी परीक्षाके प्रसंगमें पूर्वपथको सिद्धिके लिए अनुमान उपस्थित करते हुए लिखा है कि सम्पूर्ण ग्राह्य-ग्राहकाकार ज्ञान भ्रान्त है। जिस प्रकार स्वप्न और इन्द्रमाल आदि ज्ञान प्रान्स होते हैं, उसी प्रकार ग्राह्य-ग्राहकाकार आदि प्रत्यक्ष भी भ्रान्त हैं। भ्रान्त प्रत्यक्ष आदिके द्वारा जाने गये बाह्य अर्थ वास्तविक नहीं हैं, अन्यथा स्वप्नप्रत्यक्षको भी वास्तविक मानना होगा। इस तरह बाह्य अर्थ असम्भव है, स्वसंवित्ति ही खण्डशः प्रतिभासित होती हुई समस्त वेद्य-वेदक ३५८ : तीर्थंकर महाबीर और उनकी आचार्य-परम्परा