Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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चेतनत्वं मूर्तत्वं च नास्ति । एवं द्विद्विगुणवर्जिते मष्टौ अष्टौ गुणाः प्रत्येकद्रव्ये भवन्ति ।]
ज्ञानदर्शनसुखवीर्याणि स्पर्शरसगंधवर्णाः गतिहेतुत्वं स्थितिहेतुत्वमवगाह्नहेतुत्वं वर्त्तनाहेतुत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं मूर्तस्वममूर्तत्वं द्रव्याणां षोडश विशेष
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"अर्थात् अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तस्व ये द्रव्योंके सामान्यगुण हैं । सदेव द्रव्यों के साथ रहते हैं, द्रव्योंसे पृथक नहीं होते । प्रत्येक द्रव्यमें दश सामान्यगुणों से आठ-आठ गुण रहते हैं, दो-दो गुण नहीं होते । ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहन हेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तस्व ये द्रव्योंके सोलह विशेषगुण हैं । इस प्रकार द्रव्य, गुण, स्वभाव के अतिरिवत नय और प्रमाणका भी विवेचन किया है ।
आचार्य अमितगति प्रथम
जैन साहित्य में अमितगति नामके दो आचार्योंके उल्लेख मिलते हैं । एक माधवसेन के शिष्य और नेमिषेणके प्रशिष्य हैं। और जिन्होंने सुभाषित रत्नसन्दोह, धर्मपरीक्षा, उपासकाचार, संस्कृतपञ्चसंग्रह आदि ग्रन्थ रचे हैं । दूसरे अमितगति से हैं, जो नेमिषेणके गुरु तथा देवसेनसूरिके शिष्य हैं और जिनका गुणकीर्तन सुभाषितरत्नसन्दोहको अन्तिम प्रशस्तिमें उसके रचयिता अमितगतिने स्वयं किया है । इस तरह सुभाषितरत्नसन्दोहके कर्ता अमितगति द्वारा उल्लिखित एवं नेमिषेणके गुरु तथा देवसेनके शिष्य अमितगति प्रथमअमितगति हैं और इनका उल्लेख करनेवाले तथा दो पोढ़ी पीछे होनेवाले माधवसेन के शिष्य और नेमिषेणके प्रशिष्य सुभाषितरत्नसन्दोहकार अमितगति द्वितीय अमितगति हैं । इन अमितगतिने प्रथम अमितगतिको 'त्यनि:शेषशङ्गः' विशेषण देकर अपनेको उनसे पृथक् सिद्ध किया है। प्रथम अमितगतिने स्वयं उक्त विशेषण अपने साथ लगाया है । आचार्य जुगलकिशोर
१. आलापपद्धति, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, पु० १३३ - १३४ ।
२. 'निःसङ्गात्मामितगतिरिदं प्राभृतं योगसारम्' – योगसारप्राभृत, सम्पादक पण्डित जुगलकिशोर मुख्तार, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, सन् १९६८ अधिकार ९,
पद्म ८३ ।
तघर और सारस्वताचार्य : ३८३