Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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दत्थं दहमेयं छन्भेयं पज्जयत्थियं णेयं । तिविहं च गमं तद् दुविहं पुण संग्रहं तत्थ | ववहार रिउसुतं दुवियप्पं सेसमाहू एक्केक्का ।" उत्ता इह णयमेया उपणयभैया वि पभणामो ॥ द्रव्यार्थिकके १० भेद, पर्यायाथिक ६ भेद, नैगम नयके तीन भेद, संग्रहके दो, व्यवहार और ऋतुसूत्र के दो-दो भेद और शेष नयोंका एक-एक भेद है । उपनयके तीन भेद हैं--- (१) सद्भूत, (२) असद्भूत और (३) उपचरित नय | सद्भूत के दो भेद हैं और असद्भूत के तीन तथा उपचरितके तीन । इस प्रकार नयके भेद-प्रभेदोंका कथन कर द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक नयोंकी अपेक्षासे वस्तु विवेचन किया गया है।
६. बालाप पद्धति
यह संस्कृत गद्य में रचित छोटी सो रचना है । अन्य ग्रन्थोंके समान इसका प्रकाशन भी माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमालासे हुआ है । इस ग्रन्थमें गुण, पर्याय, स्वभाव, प्रमाण, नय, गुण-व्यत्पत्ति, स्वभावव्युत्पत्ति, प्रमाणका कथन, निक्षेपकी व्युत्पत्ति, नयोंके भेदोंकी व्युत्पत्ति एवं अध्यात्मनयों का कथन किया गया है। आरम्भमें वचनपद्धतिको हो आलापपद्धति कहा है। यह ग्रन्थ निम्नलिखित अधिकारोंमें विभक्त है-
१. द्रव्याधिकार, २ गुणाधिकार ३. पर्यायाधिकार, ४. स्वभावाधिकार, ५. प्रमाणाधिकार, ६. नय-अधिकार, ७ गुण व्युत्पत्ति-अधिकार ८. पर्यायव्युत्पत्ति अधिकार, ९ स्वभावव्युत्पत्ति अधिकार, १०. एकान्तपक्षमें दोष, ११. नययोजना, १२ प्रमाणकथन, १३. नयलक्षण और भेद, १४, निक्षेप व्युत्पत्ति, १५ नोंके भेदोंकी व्युत्पत्ति, १६ अध्यात्मनय ।
नामानुसार विषयोंका निरूपण इन अधिकारोंमें किया गया है। जैन सिद्धान्तको अवगत करनेके लिए यह छोटा-सा ग्रन्थ बहुत उपयोगी है । द्रव्य के सामान्य और विशेष गुणोंका विवेचन करते हुए लिखा है
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"अस्तित्वं, वस्तुत्त्वं द्रव्यत्वं, प्रमेयत्वं अगुरुलघुत्वं, प्रदेशत्वं, चेतनत्वमचेतनत्वं, मूर्त्तत्वममूर्त्तत्वं द्रव्याणां दश सामान्यगुणाः । प्रत्येकमष्टावष्टो सर्वेषाम् ।
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[ एकैकद्रव्ये अष्टौ अष्टौ गुणा भवंति । जीवद्रव्ये अचेतनत्वं मूतत्वं च नास्ति, पुद्गलद्रव्ये चेतनत्वममृतत्वं च नास्ति, धर्माधर्माकाशकालद्रव्येषु
१. आलापपद्धति, गाया १३-१४ ।
३८२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा