Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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२. प्रमाणपरीक्षा ३. पत्रपरीक्षा
४. सत्यशासनपरीक्षा ५. श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र ६. विद्यानन्दमहोदय
टीकाग्रम्प
१. असली
२. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक
३. युक्त्यनुशासनालङ्कार
१. आप्त-परीक्षा' स्वोपज्ञवृत्तिसहित
इस ग्रन्थ में १२४ कारिकाएँ, स्वोपज्ञ वृत्ति सहित निबद्ध हैं। इस ग्रन्थमें परमेष्ठी गुणस्तोत्र की आवश्यकता प्रतिपादित करनेके पश्चात् पर अपर निःश्रेयस् का स्वरूप, बन्ध और बन्धकारणोंकी सिद्धि, उनके अभावकी सिद्धि, सहेतुक निर्जराकी सिद्धि परमेष्ठीगत प्रसादका लक्षण, मंगलकी निर्युक्ति और अर्थ, शास्त्रारम्भमें परमेष्ठीगुणस्तोत्रकी आवश्यकता एवं पराभिमत आप्तोके निराकरणकी सार्थकता बतलायी गयी है।
ईश्वर-परीक्षा प्रकरण में ईश्वर के मोक्षमार्गोपदेशकी असम्भवता, वैशेषिकाभिमत षट्पदार्थ समीक्षा, द्रव्यलक्षण के योगसे एक द्रव्यपदार्थ की असिद्धि, द्रव्य - लक्षणत्वके योगसे दो द्रव्यलक्षणों में एकताको असिद्धि द्रव्यत्वके योगसे एक द्रव्यपदार्थ की असिद्धि, गुणत्वादिके योगसे एक-एक गुणादि पदार्थोंकी असिद्धि, 'इदम् प्रत्यय' सामान्यसे भी द्रव्यादि पदार्थों की असिद्धि संग्रहसे भी द्रव्यादि पदार्थो की असिद्धि, द्रव्यत्वाभिसम्बन्धसे एक द्रव्यपदार्थ माननेका निरास, गुणत्वादि अभिसम्बन्धसे एक-एक गुणादिपदार्थ माननेका निरास, पृथ्वीत्वादि अभिसम्बन्धसे एक-एक पृथ्वी आदि द्रव्य मानने का निरास, संग्रहके तीन भेद और उनकी समीक्षा, ईश्वरके जगत् कर्तृत्वको समालोचना, ईश्वर के नित्य ज्ञान मानने में दोष-प्रदर्शन, ईश्वरके अनित्यज्ञानकी मोमांसा, अव्यापक ज्ञानमें दोष, ईश्वरके नित्य व्यापक ज्ञान में दोष, समवायका स्वरूप और समोक्षा, संयोग और समवायकी व्यर्थता, सत्ता और समवायके एकत्वका खण्डन, सत्ताको
१. डॉ० दरबारीलाल कोठिया द्वारा सम्पादित और वीरसेवा मन्दिर द्वारा प्रकाशित, १९४९ ।
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श्रुतवर और सारस्वताचार्य : ३५३