Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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क्रमसं०
૨૪
२५
२६
२७
२८
२९
३०
३१
३२
नामछन्द
भुजंगप्रयात
मन्दाक्रान्ता
मत्तमयूर
मालिनी
रथोद्धता
रुचिरा
वंशस्य
१९
वसन्ततिलका
वियोगिनी
विद्युन्माला
वंशपत्रपतितम्
स्रग्धरा
शार्दूलविक्रीडितम् शालिनी
शिखरिणी
श्रकुछन्द
हरिणी
१ संगीत- धर्मका प्रादुर्भाव २. रागात्मक वृत्तियोंका अनुरंजन
३. विशेष मनोभावों का क्षनुरंजन ४. प्रेषणीयताका समावेश
संख्या
१५
१
२१९
*
३३
३४
३५
३६
३७
३८
३९
४०
इस ग्रन्थ में इक्कीस छन्द इस प्रकारके आये हैं, जिनका निर्धारण सम्भव नहीं है । यथा १७१४०५-४०६, ४२ ३७, ६४, ७७ ११२/१५, १६, ११४/५४, ५५, १२३।१७०-१७९,१८१,१८२ । रविषेणाचार्यने संगीतात्मक संगीत विकासके लिये छन्दोयोजना की है । यतः विशिष्ट भावोंकी अभिव्यक्ति विशिष्ट छन्दोंके द्वारा ही उपयुक्त होती हैं। लपको व्यवस्था छन्दोंके निर्माण में सहायक होती है । यहीं कारण है कि रविषेणने लय और स्वरोंका सुन्दर निर्वाह किया है। इनको छन्दोयोजना के निम्नलिखित उद्देश्य हैं
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१
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७
३
१
१
अलंकार-योजनाकी अपेक्षा से भी यह काव्य सफल है। इसमें अनुप्रास, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोकि, सन्देह, मोलित, सार, विरोधाभास भ्रान्तिमान, उल्लेख, उत्तर, स्मरण, परिकर, अनन्वय, विनोक्ति, दृष्टान्त,
भुतघर और सारस्वताचार्य २८९