Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
साँपके मुंहमें फंसे हुए मेढकपर पड़ो। इससे उन्हें विकि हो गयो । प्रसिद्ध धेयाकरण पाणिनि अपना व्याकरण अन्य रच रहे थे। वह न हो पाया था कि उन्हें अपना मरण काल निकट दिखलाई पड़ा, और पूज्यपादसे अनुरोध किया कि तुम इस अपूर्ण अन्यको पूर्ण कर दो। उन्होंने उसे पूर्ण करना स्वीकार कर लिया । पाणिनि तुनिवश मरकर सर्प हुए । एक बार उन्होंने पूज्यपादको देखकर फूत्कार किया, इसपर पूज्यपादने कहा--"विश्वास रखो, मैं तुम्हारे व्याकरणको पूरा कर दूंगा।" इसके पश्चात् उन्होंने पाणिनि-ध्याकरणको पूर्ण कर दिया। पाणिनि-व्याकरणके पूर्ण करने के पहले पूज्यपादने जैनेन्द्र व्याकरण, अर्हदप्रतिष्ठालक्षण और वैदिक ज्योतिषके ग्रन्थ लिखे थे। ___ गुणभट्टको मृत्युके पश्चात् नागार्जुन अतिशय दरिद्र हो गया। पूज्यपादने उसे पद्माक्सीका एक मन्त्र दिया और सिर करनेकी निधि भी बतलाई। इस मन्त्रके प्रभावसे पद्मावतीने नागार्जुनके निकट प्रकट होकर उसे 'सिदिरस' की जड़ो-बनस्पति बतला दी। इस "सिदिरस'के प्रभावसे नागार्जुन सोना बनाने लगा। उसके गर्वका परिहार करने के लिए पूज्यपादने एक मामूली वनस्पतिसे कई घड़े 'सिद्धिरस' बना दिया । नागार्जुन जब पर्वत्तोंको सुवर्णमय बनाने लगा, तब धरणेन्द्र पद्मावतीने उसे रोका और जिनालय बनानेका आदेश दिया । तद्नुसार उसने एक जिनालय बनवाया और उसमें पास्यनायको प्रतिमा स्थापित की।
पूज्यपाद अपने पैरोंमें गगनगामी लेप लगाकर विदेह क्षेत्र जाया करते पे, उस समय उनके शिष्य वजनन्दिने अपने साथियोंसे झगड़ा कर द्रविड संघकी स्थापना की।
नागार्जुन अनेक मन्त्र-तन्त्र तथा रसादि सिद्ध करके बहुत प्रसिद्ध हो गया। एक बार उसके समक्ष दो सुन्दर रमणियां उपस्थित हुई, जो नृत्य-गान कलामें कुशल थी । नागार्जुन उनपर मोहित हो गया । वे वहीं रहने लगी और कुछ समय बाद ही उसकी रसगुटिका लेकर चलती बनीं।
पूज्यपाद मुनि बहुत दिनों तक योगाभ्यास करते रहे | फिर एक देवविमानमें बैठकर उन्होंने अनेक तीर्थोकी यात्रा को । मार्ग में एक जगह उनकी दृष्टि नष्ट हो गयी थी। अतएव उन्होंने शान्त्यष्टक रच कर ज्यों-की-त्यों दृष्टि प्राप्त की । अपने ग्राममें आकर उन्होंने समाधिमरण किया ।
इस कथामें कितनी सत्यता है, यह विचारणीय है।
श्रुतपर और सारस्वताचार्य : २२१