Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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पादके समाधितंत्रके तुल्य है। परमात्मप्रकाश (१११२१-१२४) में आरमाके तीन मेदोंका वर्णन है। यह वर्णन मोक्षप्राभूत (४-८) से मिलता है । सम्यक्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिको परिभाषाएँ भी परमात्मप्रकाश (११७६-७७) और कुन्दकुन्दके मोक्षप्रामृत (१४-१५) में समान रूपसे पायी जाती हैं। ब्रह्मदेवने अपनी संस्कृतटोकामें ७६ और ७७वें दोहेका व्याख्यान लिखते हुए उक्त गापाएँ उद्धृत को हैं । इस प्रकार निम्नलिखित दोहे और गाथाएं समान भावको हैंमोक्खपाहुड
परमात्मप्रकाश २४ गाथा
११८६ दोहा ३७ गाथा ५१ गाथा
२११७६-१७७ दोहा पूज्यपादके समाधितन्त्र और परमात्मप्रकाशकी तुलनासमाधितन्त्र
परमात्मप्रकाश ४-५ पद्य
११-१४ दोहा ३१ पद्य
२२१७५; ११२३ दोहा ६४-६६ पद्य
२।१७८-१८० दोहा ७० पद्य
१८. दोहा समाधितन्त्र और परमात्मप्रकाश दोनों ग्रन्थोंमें विषयगत और शैलीगत अनेक समसाए' पायी जाती है। व्याकरण होनेके कारण पूज्यपादके उद्गार संक्षिा, परिमार्जित और व्यवस्थित हैं। पूज्यपादने समाधितन्त्रमें जिस तथ्यको संक्षेपमें प्रतिपादित किया है उस तथ्यको जोइंदुने विस्तारपूर्वक निरूपित किया है। यहाँ तुलनाके लिए कतिपय पद्य उद्धृत किये जाते हैं
वः परात्मा स एवाहं योऽह स परमस्ततः । अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ॥
... समाधिसन्त्र, पद्म-३१ जो परमप्पा गाणमउ सो हर देउ अर्णतु । जो हर सो परमप्पु परु एहउ भावि णिभंतु ॥
-परमात्मप्रकाश, २०१७५
जीर्णे वस्त्रे यथात्मानं न जीणं मन्यते तथा । जीर्णे स्वदेहेऽप्यात्मानं न जीणं मन्यते बुषः ।।
-समाधिसंत्र, पच-६४ श्रुतपर और सारस्वताचार्य : २४७