Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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यही कारण है कि विमलसूरिने 'पउमचरिय में दिगम्बर परम्पराके अनुसार तथ्यों का समावेश किया है | लेखकने कथाकी उत्थानिका श्रेणिकके प्रश्नोत्तर द्वारा ही उपस्थित की है, जो कि दिगम्बराचायोंको विशेषता है। इसके अतिरिक्त अन्य तथ्य भी दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार समाविष्ट हैं। यथा
१. महावीरका अविवाहित रहना
२. सिलाके गर्भ में महावीरका आना
३. स्थावर काय के ५ भेटों की मान्यता
४. चौदह कुलकरों की मान्यता ५. चतुर्थ शिक्षाव्रत में समाधिमरणका ग्रहण
६. ऋषभ द्वारा अचेलक व्रतका अपनाया जाना
७. सात नरक और सोलह स्वर्गों की मान्यता
८. स्त्रीमुक्ति सम्बन्में मौन
९. केवीके कवलाहारका अभाव १०. अष्टद्रव्यद्वारा पूजनविधि
इनके अतिरिक्त श्वेताम्बर मान्यताएं भी इस ग्रन्थ में उपलब्ध है। दिगम्बर मान्यता के सोलह स्वप्नोंके स्थानपर चौदह स्वप्नोंका माना जाना, भरत चक्रवर्तीके ९६ हजार रानियोंके स्थानपर ६४ हजार रानियोंकी कल्पना, आशीर्वादिके रूपमें गुरुओं या मुनियों द्वारा धर्मलाभ शब्दका प्रयोग किया जाना आदि ऐसे तथ्य हैं, जिनसे श्वेताम्बर मान्यताकी पुष्टि होती है । वस्तुस्थिति यह है कि विमलसूरिने रामकथाका वह रूप अंकित किया है, जो दिगम्बर श्वेताम्बर दोनोंको अभिप्रेत है । संक्षेपमें विमलसूरि यापनीय सम्प्रदायके अनुयायी है ।
समय-निर्धारण
विमलसूरिने 'पउमचरिय' को प्रशस्तिमें अपने समयका अंकन किया है । उसके आधारपर इनका समय ई० सन् प्रथम शती है, पर ग्रन्थके अन्तः परीक्षणसे यह समय घटित नहीं होता है । अतः जैकोवो और अन्य विद्वानोंने इनका समय ई० सन् चौथी, पाँचवीं शताब्दी माना है ।
विमलसूरके 'अउमचरिय' के आधार पर रविषेणने संस्कृत 'पद्मचरितं' की रचना की है और इसका रचनाकाल ई० सन् 9वीं शताब्दी है । अत: विमलसूरिका समय ७वीं शताब्दी के पूर्व होना चाहिये । विमलसूरिने जिस परिमार्जित महाराष्ट्री प्राकृतका प्रयोग इस ग्रन्थ में किया है, भाषाका वह रूप ई० सन्
१५६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा