Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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(२ जो सुत्तो बवहारे सो जोई जग्गए सकज्जम्मि ।
जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणे कज्जे' ।। व्यवहारे सुषुप्तो यः स जागात्मगोचरे ।
जागर्ति व्यवहारेऽस्मिन् सुषुप्तश्चात्मगोचरे ।। यहां समाधितन्त्रके दोनों पद्य मोक्षपाहुडके संस्कृतानुवाद हैं। पूज्यपादने अपने सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थमें 'संसारिणो मुक्ताश्च' [तक सू० २०१०] सूत्रकी व्याख्यामें पंच परावर्तनोंका स्वरूप बतलाते हुए, प्रत्येक परावर्तनके अन्तमें उनके समर्थन में जो 'उक्त च' कहकर गाथाएं लिखी हैं. वे उसी क्रमसे कुन्दकन्दने 'बारसअणुवेक्खा' ग्रन्थमें पायी जातो हैं ।
इसके अतिरिक्त्त पूज्यपादने कुन्दकुन्दके उत्तरवर्ती गृढपिच्छाचार्य उमास्वामीके तत्त्वार्थसूत्रपर तत्त्वार्थवृत्ति-सर्वार्थसिद्धि लिखी है । अतएव इनका समय कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छाचार्य के पश्चात् होना चाहिए | कुन्दकुन्दका समय विक्रमको द्वितीय शताब्दीका पूर्वाद्ध है और सूत्रकार गृपिच्छाचार्यका समय विक्रमकी द्वितीय शताब्दीका अन्तिम पाद है । अतः पूज्यपादका समय विक्रम संवत् ३००के पश्चात् ही सम्भव है।
पूज्यपादने अपने जैनेन्द्र व्याकरणके सूत्रोंमें भूतलि, समन्तभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र और प्रभाचन्द्र नामक पूर्वाचार्योंका निर्देश किया है । इनमेंसे भूतवलि तो 'षट्खण्डागम'के रायता प्रतीत होते हैं, जिनका समय ई० सन् प्रथम शताब्दी है । प्रखर तार्किक और अनेकान्तवादके प्रतिष्ठापक समन्तभद्र प्रसिद्ध ही हैं। श्रीदत्तके 'जल्पनिर्णय' नामक ग्रन्थका उल्लेख विद्यानन्दने अपने 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में किया है । अतः स्पष्ट है कि पूज्यपाद इन आचार्यों के उत्तरवर्ती हैं। ___पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तारने अपने स्वामी समन्तभद्र' नामक निबन्धमें तथा 'समाधितन्त्र की प्रस्तावनामें बताया है कि पूज्यपाद स्वामी गङ्गराज दुविनीसके शिक्षागुरु थे, जिसका राज्यकाल ई० सन् ४८५-५२२ तक माना जाता है, और इन्हें हेल्बुरु आदिके अनेक शिलालेखोंमें 'शब्दावतार के कर्ताके रूपमें दुर्विनोत राजाका गुरु उल्लिखित किया है । १. मोअपाहर, गापा ३१ । २. समाषितन्त्र, पञ्च ७८ । ३. "द्विप्रकार जो उत्पं तस्वप्रातिभमोचरम् । विषच्छे दिनां बेता श्रीदतो जल्पनिर्णय" ॥
-तत्वार्यश्लोकवार्तिक, पृ० २८०, पद्म ४५ ।
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : २२३