Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्रका वर्ण्य विषय जैनधर्मके मूलभूत समस्त सिद्धान्तोंसे सम्बद्ध है । इसे जैन सिद्धान्तकी कुंजी कहा जा सकता है। तत्त्वार्थसूत्रको रचनाका स्रोत |
तत्त्वार्थ सूत्रके सूत्र कुन्दकुन्दके नियमसार, पंचास्तिकाय, भावपाड, षट्खण्डागम प्रवचनसार, आदिके आधारपर निर्मित हुए हैं । “सम्यग्दर्शनशाचारित्राणि मोक्षमागं" [१-१] सूत्रका मूल स्रोत नियमसार है । कुन्दकुन्दने अपने नियमसारको प्रारम्भ करते हुए लिखा है कि जिनशासनमें मागं और मार्गफलको उपादेय कहा है। मोक्षके उपायको मार्ग कहते हैं और उसका फल निर्वाण है। ज्ञान, दर्शन और चारित्रको नियम कहा जाता है तथा मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्रका परिहार करनेके लिए उसके साथ 'सार' पद लगाया है। तस्वार्थसूत्र में भी मिथ्यादर्शनादिका परिहार करनेके लिए दर्शनादिकके साथ सम्यक् पद लगा है।
मग्गो मागफल ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवायो तस्स फलं होइ णिव्याणं ।। णियमेण य ज कज्जं तणियम णाणदसणचरितं ।
विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि क्षणं ।' तत्त्वार्थसूत्रके द्वितीय सूत्र तथा चतुर्थ सूत्रका आधार भी कुन्दकुन्दके ग्रन्थ हैं । कुन्दकुन्दने सम्यकदर्शनका स्वरूप वतलाते हुए लिखा है
"अत्तागमतच्चाणं सद्दणादो हवेइ सम्मत्तं ।।"२ आप्त, आगम और तत्त्वोंके श्रद्धानको सम्यकदर्शन कहते हैं और तत्त्वार्थ आगममें कहे हुए पदार्थ हैं।
तत्वार्थसूत्रकारने नियमसारके उक्त सन्दर्भको स्रोत मानकर 'सत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यकदर्शनम्"[१-२]सूत्र लिखा है। वस्तुतः यह सूत्र "तच्चाणं सहपादो हवेइ सम्मत्त"का अनुवाद है । सात तत्त्वोंके नाम कुन्दकुन्दके 'भावपाहुड' आदि ग्रन्थोंमें मिलते हैं। "सरसंख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च" [१-८J सूत्रका स्रोत 'षट्खण्डागम'का निम्नलिखित सूत्र है__ "संतपरूवणा दव्वपमाणाणुगमो खेत्ताणुगमो कोसणाणुगमो कालाणुगमो अंतराणुगमो भावाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि ।" [१-१-७] १. नियमसार, गाषा २,३ । २, बहा, गाथा ५ । ३. वही, गाथा ८।
ध्रुवघर और सारस्वताचार्य : १५९