Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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९. वैयावृत्यकरण, १० अदुभक्ति, ११ आचार्यभक्ति १२ बहुश्रुतभवित १३ प्रवचन भक्ति, १४ आवश्यका परिहाणि १५ मार्गप्रभावना और १६ प्रवचनवत्सलत्व ये सोलह भावनाएं तीर्थकरनामकर्मके चन्धको कारण है ।
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उपर्युक्त सूत्रका स्रोत 'षट्खण्डागम' के 'वंधसामित्तविचओ' का निम्न सूत्र है - दंसणविसुज्झदाए विनयसंपण्णदाय सोलव्वदेसु निरदिचारदाए आवासएसु अपरिहीणदाए खण लव - पडबुज्झनदाए लद्धिसंग संपण्णदाए जधाथामे तधात्तवे साहूणं पासुअपरिचानदाए साहूण समाहिसधारणाए माहूणं वेज्जावच्चजोगजुत्तदाए अरहंतमत्तीए बहुसुदभत्तीए पवयणभत्तीए गवयणवच्छलदाए पवयणउपभावणदाए अभिक्खणं अभिक्खणं गाणोवजोगजुतदार, इच्नेदेहि सांसेहि कारणेहि जीवा तित्थयरणामगोदं कम्म बघत ॥
दोनों सूत्रों के अध्ययन से स्पष्ट ज्ञान होता है कि गृद्धपिच्छाचार्य प्राकृतसूत्रका संस्कृत रूपान्तर कर दिया है।
तत्वार्थ सूत्र के नवम अध्यायमें बारह अनुप्रेक्षाओं का कपन आया है। इनका स्रोत 'भगवती आराधना', 'मूलाचार' एवं कुन्दकुन्दाचार्यको 'बारसअणुवेक्खा' है । इन तीनों ग्रन्थोंमें द्वादश अनुप्रेक्षाओंको गिनाने वाली गाथा एक ही है । तत्त्वार्थसूत्रकारने द्वादश अनुप्रेक्षाओंके क्रम में मात्र कुछ अन्तर किया है तथा प्रथमानुप्रेक्षाका नाम अनित्य रखा है, जबकि इन ग्रन्थोंमें अव है ।
तत्त्वार्थसूत्र के नवम अध्यायके नवम सूत्रमें २२ परीषहों के नाम गिनाये गए हैं। उनमें एक 'नाग्न्य' परिषह भा है । 'नाग्न्य' का अर्थ नंगापना है । यहाँ आचार्यने अचेलकी अपेक्षा 'नाग्न्य' पदके प्रयोगको अधिक महत्त्व दिया है । इससे ज्ञात होता है कि सूत्रकर्ताको साधुओं की नग्नता इष्ट श्री और उन्हें उसका परीषह सहना ही चाहिए, यह भी मान्य था ।
इस तरह षट्खण्डागम और कुन्दकुन्द साहित्य में तस्वार्थसूत्रके सूत्रोंके अनेक बीज वर्त्तमान हैं ।
सूत्रपाठ
तत्वार्थ सूत्रके दो सूत्रपाठ उपलब्ध होते हैं । पहला सूत्रपाठ वह है जिसपर पूज्यपाद, अकलंकदेव और विद्यानन्दने टीकाएं लिखी है। यह पाठ दिगम्बर परम्परा में प्रचलित है। दूसरा पाठ वह है, जिसपर तस्वार्थाधिगमभाष्य पाया जाता है तथा सिद्धसेन गणि और हरिभद्रने अपनी टीकाएं लिखी हैं। इस दूसरे
१. षट्खण्डागम, पुस्तक ८, पृ० ७९ ।
१६२ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा