Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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पर्यायोंका विवेचन किया गया है । आत्माके मिध्यात्व, अज्ञान और अविरति ये सीन परिणाम अनादि हैं। जब इन तीन प्रकारके परिणामोंका कर्तृत्व होता है, तब पुद्गलद्रव्य स्वयं कर्मरूप परिणमन करता है । परद्रव्यके भावका जीव कभी भी कर्त्ता नहीं है ।
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तीसरे पुण्य-पाप अधिकारमें शुभाशुभ कर्मस्वभाव वर्णित हैं। अज्ञानपूर्वक किये गये व्रत, नियम, शील और तप मोक्षके कारण नहीं हैं । जीवादि पदार्थोंका श्रद्धान, उनका अधिगम और रागादिभावका त्याग मोक्षका मार्ग बतलाया है। चौथे आस्रवाधिकारमें मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, योग और कषाय आसव बतलाये गये हैं । वस्तुतः राग, द्वेष, मोहरूप परिणाम हो आस्रव हैं। ज्ञानीके आस्रवका अभाव रहता है । यतः राग-द्वेष-मोहरूप परिणामके उत्पन्न न होने से आस्रवप्रत्ययोंका अभाव कहा जाता है । पाँचवें संवर अधिकार में संवरका मूल भेदविज्ञान बताया है । इस अधिकारमें संवरके क्रमका भी वर्णन है । छठवें निर्जरा अधिकारमें द्रव्य, भावरूप निर्जराका विस्तारपूर्वक निरूपण किया है। ज्ञानी व्यक्ति कर्मों के बीच रहने पर भी कर्मोसे लिए नहीं होता है, पर अज्ञानी कर्मरजसे लिप्त रहता है। सातवें बम्चाधिकार बन्धके कारण रागादिका विवेचन किया है । बाठवें मोक्षाधिकारमें मोक्षका स्वरूप और नववें सर्वविशुद्ध ज्ञानाधिकारमें आत्माका विशुद्ध ज्ञानको दृष्टिसे अकव आदि सिद्ध किया है । अन्तिम दशम अधिकारमें स्याद्वादकी दृष्टिसे आत्मस्वरूपका विवेचन किया है ।
इस ग्रन्थ में आचार्य अमृतचन्द्रके टोकानुसार ४१५ गाथाएँ और जयसेनाचार्यको टीकाके अनुसार ४३९ गाथाएँ हैं । शुद्ध आत्माका इतना सुन्दर और यवस्थित विवेचन अन्यत्र दुर्लभ है ।
३. पञ्चास्तिकाय - इस ग्रन्थ में कालद्रव्यसे भिन्न जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश इन पाँच अस्तिकायोंका निरूपण किया गया है । बहुप्रदेशी द्रव्यको आचार्यने अस्तिकाय कहा है । द्रव्य- लक्षण, द्रव्यके भेद, सप्तभंगी, गुण, पर्याय, कालद्रव्य एवं सत्ताका प्रतिपादन किया है। यह ग्रन्थ दो अधिकारोंमें विभक्त है । प्रथम अधिकारमें द्रव्य, गुण और पर्यायोंका कथन है और द्वितीय अधिकार में पुण्य, पाप, जीव, अजीब, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा एव मोक्ष इन नय पदार्थों के साथ मोक्ष मार्गका निरूपण किया है।
इस ग्रन्थ में अमृत्त चन्द्राचार्यकी टोकाके अनुसार १७३ गाथाएं और जयसेनाचार्य के टीकानुसार १८१ गाथाएं है । द्रव्य स्वरूपको अवगत करनेके लिए यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी है ।
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श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ११३