Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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गया है और नागहस्तिका पश्चात् । यहां यह अवश्य विचारणीय है कि धवला एवं जयधवलामें उल्लिखित आर्यमंझ, और नागस्ति श्वेताम्बर पट्टावलियोंके हो आचार्य हैं तो दोनों परम्पराओंमें इतना अन्तर क्यों है ? अताभिहता और पाण्डित्य
आर्यमंक्ष, और नागहस्ति 'महाकम्मपडिपाहुड' के ज्ञाता थे । इनसे यतिवृषभने 'कसायपाहुड' के सूत्रोंका व्याख्यान प्राप्तकर चूर्णिसूत्रोंको रचना की है । अतः ये दोनों आचार्य पेज्जदोसपाहुडके भी उत्कृष्ट ज्ञाता थे। धवला टोकाकार आचार्य बोरसेनने आर्यमंक्ष, और नागहस्तिके उपदेशका वर्णन करते हुए लिखा है कि आर्यमक्ष और नागहस्तिके उपदेश प्रवाहकमसे आये हुए थे। उन उपदेशको 'पवाइज्जमाण' कहा है।
"तेसि चेव भयवंताणमज्जमखु-णागहत्थोणं पवाइज्जतेणुवएसेण चोइस जोबममासेसु जहष्णुक्कस्सपदविसेसिदो अप्पाबहुअदंडओ एतो भणिहिदि भणिष्यत इत्यर्थः । __ इस उद्धरणसे यह स्पष्ट है कि आचार्य वीरसेन उक्त दोनों आचार्योंके उपदेशको परम्परासे प्राप्त प्रवाहमान कहा है । जो तथ्य आरातोयपरम्परासे प्राप्त होते हैं वे ही तथ्य यथार्थ कहे जाते हैं और उन्हींको प्रवाह्यमान कहा जाता है।
आगे चलकर इसी जिल्दमें आचार्य वीरसेनने कषायोंके संयोगके वर्णनप्रसंगमें आर्यमक्ष के उपदेशको 'अपवाइज्जमाण' और नागहस्तिके उपदेशको 'पदाइज्जंत' कहा है । बताया है___ "एत्तो पवाइज्जतोवएसमलविय एदिस्से चउत्थोए सुत्तगाहाए अस्थविहासणा कीरदि ति वुत्तं होइ ! को वुण पवाइज्जतोवएसो णाम? वुच्चदे-वुत्तमेद सव्वाइरियसम्मदो चिरकालमवोच्छिण्णसंपदायकमेणागच्छमाणो जो सिस्सपरंपराग पवाइज्जदे पण्णविजदे सो पवाइजसोवएसो ति भण्णदे। अथवा अज्जमखुभयवंताणमुवाएसो एल्यापवाइज्जमाणो णाम । णागहत्यिखवणाणमुवएसो पवा. दज्जंतयो त्ति घेत्तब्वो।"२
जो सब आचार्योंके द्वारा सम्मत है । विरकालसे अटित सम्प्रदायक्रमसे चला आ रहा है और जो शिष्यपरम्पराके द्वारा प्रवाहित किया जाता है या ज्ञापित किया जाता है, वह प्रवाहमान उपदेश कहलाता है। आर्यमा १. कसायपाहूड, जयपवलाटीका, जिल्द १२, पृ० २३. २. कसायपाहुर, जयषधला टीका, जिल्द १२, पृ० ७२.
ध्रुवघर और सारस्वताचार्य : ७७