Book Title: Siddhachakra Varsh 06 - Pakshik From 1937 to 1938
Author(s): Ashoksagarsuri
Publisher: Siddhachakra Masik Punarmudran Samiti

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Page 420
________________ ३४४ શ્રી સિદ્ધચક્ર du.१४-५-१८३८ संपखुिडओ महयाहयणट्टगीयवाइ अ जाव जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छन्ति २ त्ता भगवओ भोगभोगाइं पूंजमाणीओ विहरंति, तंजहा-भोग- तित्थयरस्स जम्मणभवणं तेहि दिव्वेहिं जाणविमाणेहि करा १ भोगवई २, सुभोगा ३ भोगमालिनी ४ तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति करित्ता तीयधारा पविचित्ताय ६, पुप्फमाला ७ अणिंदिआ उत्तपुरस्थिमे दिसीभाए ईसिं चउरंगुलमसंपत्ते ८ ॥१॥ तएणं तासिं अहेलोगबत्थव्वाणं अट्ठण्हं धरणिअले ते दिव्वे जाणविमाणे ठविंति ठवित्ता दिसाकुमारीणं मयहरिआणं पत्तेयं पत्तेअं आसणाई पत्तेअं २ चउहिं सामामिअसहस्सेहिं जाव सद्धिं चलंति, तएणं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ट संपरिवुडो दिव्वेहितो जाणविमामेहितो पच्चोरुहंति दिसाकुमारीओ महत्तरिआओ पत्तेयं २ आसणाई २ ता सव्विद्धीए जाव णाइएणं जेणेव भगवं चलिआई पासन्ति २ त्ता ओहिं पउंजंति पउंजित्ता तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छन्ति २ भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति २ ता त्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो अण्णभण्णं सदावितिं २ त्ता एवं वयासो उप्पण्णे आयाहिणपयाहिणं करेंति २ त्ता पत्तेअं २ करयलखलु भो । जम्बद्दीवे दीवे भयवं । तित्थयरे तं परिग्गहिअं सिरसावित्तं मत्थए अंजलिं कट्ठ एवं जीयमेअंतीअपच्चुप्पण्णमणागयाणं अहेलोगवत्थ- बयासी - णमोत्थु ते रयणकुच्छिधारीए व्वाणं अण्हं हिसाकमारीमहत्तरिआणं भगवओ जगप्पईवदाईए सव्वजगमंगलस्स चक्खुओ अमुत्तस्स तित्थगरस्स जम्मण महिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं सव्वजगजीववच्छलस्स हिअकारगमग्गदेसियअम्हेवि भगवओ जम्मणमहिमं करेमोत्तिक एवं पागिद्धिविभुपभुस्स जिणस्स णाणिस्स नायगस्स वयंति २ त्ता पत्तेअं पत्तेअं आभिओगिए देवे बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगनाहस्स निम्ममस्स सहावेंति २ त्ता एवं एवं वयासी - खिप्पामेव भो पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तिअस्स जंसि देवाणुप्पिआ। अणेगरखम्मसयसण्णिविटे लोगुत्तमस्स जणणी धण्णासि तं पुण्णासि लीलद्विअ० एवं विमाणवण्णओ भाणिअव्वो जाव कयत्थासि अम्हेणं देवाणुप्पिए।अहेलोगवत्थव्वाओ जोअणविच्छिण्णे दिव्वे जाणविमामे विउव्वित्ता अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरिआओ भगवओ तित्थगरस्स एअमाणत्ति पञ्चप्पिणहत्ति। तएणं ते आभिओगा जम्मणमहिमं करिस्सामो, तण्ण तुब्भेहिं भाइव्वं देवा अणेगखम्भसयजाव पञ्चप्पिणंति तए णं ताओ इतिकट्ठ उत्तपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमन्ति २ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरीआओ वेउधिअसमुग्धाएणं सम्मोहणंति २ त्ता संखिजाइं हट्ठतुट्ठ० पत्तेयं पत्तेयं चउहिं सामाणिअसाहस्सीहिं जोयणाइं दंडं निसरंति, तंजहा-रयणाणं जाव चउहि महत्तरि आहिं जाव अण्णेहिं बहूहिं देवेहिं संवट्ठगवाए विउव्वंति २ त्ता तेणं सिवेणं मउएणं देवीहि असर्द्धि संपरिवुडाओ ते दिव्वे जाणविमाणे मारुएणं अणुध्धुएणं भूमितलविमलकरणेणं दुरुहंति दुरहित्ता सव्विड्डए सव्वजुईए धणमुइंगपण मणहरेणं सव्वोउअसुरहिकुसुमगन्धाणुवासिएणं वपवाइअखेणं ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए जेणेव पिण्डिमणिहारिमेणं गन्धुदूधुएणं भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरे जेणेव तित्थयरस्स (अनुसंधान पे०४ नं. 3६१)

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