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वचन - साहित्यका साहित्यिक परिचय
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(६) निरुक्तका अर्थ है किसी शब्द की व्युत्पत्ति । जिन वचनोंमें शब्दों की - व्युत्पत्ति देने का प्रयास किया गया है वे निरुक्तात्मक वचन कहे जाएंगे | वचनों = में किया जानेवाला इस प्रकारका प्रयास भाषाशास्त्र, व्युत्पत्ति - शास्त्र अथवा . ग्व्याकरण शास्त्र, इसमें से किसी एक शास्त्र से खास संबंधित है, ऐसा नहीं कहा जा सकता । कभी-कभी यह काल्पनिक भी होता है । शब्दोंमें जो प्रक्षर होते हैं उनमें से अपने विचार के अनुसार अर्थ निकाल लिया जाता है । इस प्रकारकी - व्युत्पत्ति जिन वचनों में पायी जाती है उनको निरुक्तात्मक वचन कहा गया है । ' जैसे 'लिंग' शब्दकी व्युत्पत्ति बताते हुए वचनकारोंने लिखा है, 'लिकारवे शून्य बिंदुवे लीलॅ, गकारवे चित्त" (लिकार ही शून्य, विन्दु ही लीला, गकार ही -चित्त) । उपनिषद् और ग्रागमों में भी यह पद्धति पायी जाती है ।
(७) जिन वचनों का अर्थ समस्याकी भांति गूढ़ रहता है उनको गूढात्मक वचन कहते हैं । कन्नड़में इन वचनों को मुँडिगे कहते हैं | श्री अल्लम प्रभुके ऐसे - कई वचन हैं । ऐसे वचनोंकी संख्या भी पर्याप्त है । हडपदप्पण्णाके भी ऐसे • बहुत वचन हैं । अन्योंके भी ऐसे वचन हैं किंतु कम । जो लोग इस संप्रदाय की परम्पराको अच्छी तरह जानते है वही इन गूढात्मक शब्दोंका अर्थ स्पष्ट कर सकते हैं । 'प्रभुदेवर रचने' नामका एक ग्रंथ है । उसमें ग्रल्लम प्रभुके ऐसे वचन हैं ।
(८) आत्मनिरीक्षात्मक प्रथवा आत्मबोधात्मक वचन श्रात्मगत वचन कहलाते हैं। ऐसे वचन बहुत कम हैं किंतु महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हीं वचनों - के गवाक्षोंमें-से वाचक वचनकारोंके हृदयमंदिरकी झांकी पा सकते हैं ।
अपने अनुभव, विचार, अपनी भावनाएं कल्पनाएं ग्रादि स्पष्ट रूप से दर्शाने के लिए भाषाकी आवश्यकता होती है । यही भाषाका उद्देश्य है | जब - यही अत्यंत सुन्दर, सरल, सरस और आकर्षक ढंगसे व्यक्त किया जाता है तब उसको साहित्य कहते हैं, वाङ्मय भी कहते हैं । वचनकारोंने यही किया है । करीव ग्राठ-नौ सौ वर्ष पहले कन्नड़ भाषा के शैव संतोंने अपने गहरे, गंभीर नौर उच्चतम गूढ़ विचारोंको, अनुभवोंको, तथा अपने उमड़नेवाले भाव -सागर की सूक्ष्मातिसूक्ष्म लहरोंको भी अत्यंत आकर्षक, सुन्दर, सुलभ, सरल शैली में 'लोगोंके सामने रखा है । मनुष्य के हृदय सागरमें क्षरण-क्षरण में अनंत कल्पनातरंगे उठती हैं, असंख्य और विविध विचार लहरियां लहरती हैं, गहरी अनु"भूतियोंकी शक्तिशाली भावोमियां उमड़ती हैं । ये सब औौरोंके लिए अज्ञात रहती हैं, अपने लिए भी जब तक यह सब शब्दोंकी पोशाक नहीं पहनतीं तव तक अस्पष्ट ही रहती हैं । हमारे हृदय सागरकी यह महान संपत्ति, किसी कुलीन घरकी सौभाग्याकांक्षिणी कुल-वधूकी भांति जब कभी चित्तके दर्पण के