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वचन-साहित्य-परिचय ईश पदवय्या", 'हसिविग लय विल्ल', 'विपयक्क काल विल्ल',२ कायकवे कैलास', 'आत्म निश्चय वादल्लिये कैलास', 'तन्न तानरिदॉ. तन्नरिवे गुरु'५ ऐसे असंख्य सूत्रात्मक वाक्य वचन-साहित्य में मिलेंगे। इस प्रकारके वाक्योंने कन्नड़ भाषामें नया प्रभाव भर दिया है ।।
(२) किसी भी विषयका विवेचन करके वर्णन कर समझानेवाले वचन वर्णनात्मक वचन कहे जाते हैं । ऐसे वचन बहुत कम हैं । सम्भवतः यह पद्धति वचनकारोंको पसंद नहीं थी । कहीं-कहीं एकाध वचन ऐसा पाया जाता है । जैसे, 'शून्य संपादने'६ में चन्नवसवने कल्याणका वर्णन किया है। अथवा श्री अल्लम प्रभुने श्री बसवेश्वरके घरका वर्णन किया है । इसके अतिरिक्त साक्षास्कारके कुछ वचन ऐसे हैं । ये वचन बड़े सुन्दर हैं । इनमें साक्षात्कारका सुन्दर वर्णन मिलता है। किंतु वचनकारोंने इस पद्धतिका कोई विकास नहीं किया।
(३) जिन वचनोंके द्वारा उपदेश दिया गया है वे उपदेशात्मक वचन कहलाते हैं । वचनामृतमें ऐसे कई वचन मिल सकते हैं। विशेप विवेचन न करते हुए विधि प्रधान वाक्योंसे उपदेश देना ही वचनकारोंने उचित समझा होगा। यही उनकी पद्धति रही है।
(४) जिसमें परमात्माकी प्रार्थना की गयी है ऐसे वचन प्रार्थनात्मक वचन कहे जाते हैं। ऐसे अनंत वचन हैं और वि भक्तिभावसे पूर्ण हैं । वचनामृतमें .. भी ऐसे अनेक वचन पाये जा सकते हैं।
(५) भगवानको पति और अपनेको सती मानकर कहेगये वचन सती-पतिभावात्मक वचन कहलाते हैं। यह मधुरभावकी साधना कही जाती है । वचनामृतमें इस प्रकारके कई वचन आये हैं । सती-पति संबंध अत्यंत निकटतम संबंध माना जाता है । सती और पति, मानो एक आत्मा और दो शरीर । वचनकारोंकी ही भाषामें कहना हो तो दो अांखें और एक दृष्टि । साथ-साथ वह अनंत उर्मियों का उद्गम स्थान भी है। इन सब भावोंको वचनकारोंने व्यक्त किया है। अनेक वचनोंमें यह कहा गया है, 'अंग ही सती, लिंग ही पति ।' अंगका अर्थ जीव है और लिंग का शिव । इसी रूपकका विस्तार मधुर-भाव है।
१. भूख का अंत नहीं । २. विषयका काल नहीं। ३. कायक ही कैलास। ४. आत्म-निश्चय हुआ कि कैलास । ५. अपने आपको जाना तो वह ज्ञान ही गुरु । ६. एक ग्रंथ का नाम।