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अधस्तात् ( क्रि० वि० या सं० बो० अव्य० ) नीचे, तले, ! अवर, के नीचे, के तले आदि (संबंधकारक के साथ ) दे० अधः, धर्मेण गमनमूर्ध्वं गमनमधस्ताद्भवत्यधर्मेण -
सां० का० ।
अधामार्गवः - अपामार्गः ।
अधारक (वि० ) [ स्वार्थे कन् न० ब० ] जो लाभदायक न हो -- ° कं ममेतत्स्थानम् - पंच० २ ।
अधि ( अव्य० ) [ आ + घा+कि पृषो० ह्रस्वः ] 1 ( धातु
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के साथ उपसर्ग के रूप में) ऊर्ध्व, ऊपर, रुह अति उगना या ऊपर उगना; अधिकता के साथ भी 2 ( पृथक् क्रि० वि० के रूप में ) आगे बढ़ कर, ऊपर 3 (सं० बो० अव्य० के रूप में ) ( कर्म० के साथ) (क) ऊपर, आगे, पर, में (ख) संकेत करते हुए, के संबंध में, के विषय में (ग) (अधि० के साथ) आगे, ऊपर ( किसी वस्तु पर प्रभुता या स्वामित्व प्रकट करते हुए) अधिभुवि रामः 4 (त० स० के प्रथम पद के रूप में) (क) मुख्य, प्रमुख, प्रधान देवता प्रमुख देवता (ख) व्यतिरिक्त, फालतू, – 'दन्तः = अध्यारूढः दंतः, अधिक; 'अधिक्षेप; अत्यधिक परिनिन्दन । अधिक (fo) [ अधि + ] 1 बहुत अतिरिक्त, बृहत्तर (समास में संख्याओं के साथ) धन, से अधिक अष्टाधिकं शतम् - १०० +८ = १०८२ (क) परिमाण में बढ़कर, अधिक संख्यावाला, यथेष्ट, अधिक, बहुलसमास में या करण कारक के साथ ( ख ) अतिमात्र, बढ़ा हुआ, से भरा हुआ, पूर्ण, कुशल - शिशुरधिकवया: - वेणी० ३।३०, बड़ा, अधिक आयु का भवनेषु रसाधिकेषु पूर्वम् श० ७ २०, 3 बहुत अधिकतर, बलवत्तर - ऊनं न सत्त्वेष्वधिको बबाधे - रघु० २।१४, बलवत्तर जन्तु ने अपने से दुर्बल जन्तु का शिकार नहीं किया 4 प्रमुख, असाधारण, विशेष, विशिष्ट - इज्याध्ययनदानानि वैश्यस्य क्षत्रियस्य च, प्रतिग्रहोऽधिको विप्रे याजनाध्यापने तथा । १।११८, श० ७ 5 व्यतिरिक्त, फालतू - अंग व्यतिरिक्त अंग वाला - नोद्वहेत्कपिलां कन्यां नाधिकांङ्गी न रोगिणीम् मनु०३१८, कम् 1 अधिशेष, अधिक बहुत - लाभो धिकं फलम् - अमर०, 2 व्यतिरिक्तता, फालतू होना 3 अतिशयोक्ति के समान अलंकार ( क्रि० वि० ) 1 अधिकतर, अधिक मात्रा में रघु० ४।१, समास में इयमधिकमनोज्ञा --श० ११२०, ° सुरभि - मेघ० २१, 2 अत्यन्त, बहुत अधिक । सम० - अंग (वि० ) [ स्त्री०-गी ] व्यतिरिक्त अंग रखने वाला; अर्थ ( वि०) बढ़ा कर कहा हुआ, ● वचनं - अतिशय कथन, अतिशयोक्त वक्तव्य या वचन ( चाहे प्रशंसा के हों या निन्दा के ), - ऋद्धि (वि० ) प्रचुर पुष्कल - रघु० १९/५, तिथि: ( स्त्री०), - दिनम्,
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- दिवसः बढ़ा हुआ चांद्र दिवस, वाक्योक्तिः ( स्त्री०) बढ़ा चढ़ाकर कहना, अतिशयोक्ति अलंकार । अधिकरणम् - [ अधि + कृ + ल्युट् ] 1 प्रघान स्थान पर रखना, नियुक्ति 2 संबंध, उल्लेख, संपर्क 3 ( व्या० ) अनुरूपता, लिंग, वचन, कारक और पुरुष की समानता, अन्वय, कारक चिह्नों का इतर शब्दों से संबंध 4 आशय, विषय, उपस्तर 5 अधिष्ठान, स्थान, अघिकरण कारक का अर्थ - आधारोऽधिकरणम् - पा० १। ४४५, प्रस्ताव, विषय, किसी विषय पर पूर्ण तर्क, ( मीमांसकों के अनुसार पूर्ण अधिकरण के ५ अंग होते हैं-विषयो विशयश्चैव पूर्वपक्षस्तथोत्तरम्, निर्णयश्चेति सिद्धान्तः शास्त्रेऽधिकरणं स्मृतम् । ) 7 न्यायालय, कचहरी, न्यायाधिकरण, – स्वान्दोषान् कथयंति नाधिकरणे - मृच्छ० ९1३, 8 दावा 9 प्रभुता । सम० -- भोजक : 'न्यायाधीश, मंडपः कचहरी या न्यायभवन, - सिद्धान्तः ऐसा उपसंहार जिसका प्रभाव औरों पर भी पड़े ।
अधिकरणिकः [ अधिकरण + ठन् ] 1 न्यायाधीश, दण्डा
धिकारी मृच्छ० ९, 2 राजकीय अधिकारी । अधिकर्मन् ( न० ) [ प्रा० स०] 1 उच्चतर या बढ़िया कार्य 2 अधीक्षण, - ( पु० ) जिसके ऊपर अधीक्षण का कार्य भार हो । सम० - करः, -कृत् एक प्रकार का सेवक, कर्मचारियों का अध्यवेक्षक । अधिकमकः [ अधिकर्मन् +-ठ ] किसी मंडी का अध्यवे
क्षक जिसका कार्य व्यापारियों से कर उगाहने का हो ।
अधिकाम ( वि० ) [ अधिक: कामो यस्य ] 1 उत्कट अभि
च
लाषी, आवेशपूर्ण, कामातुर, -मः उत्कट अभिलाषा । अधिकारः [ अधि + कृ + घञ ] 1 अधीक्षण, देखभाल करना 2 कर्तव्य, कार्यभार, सत्ताधिकार का पद, प्रभुत्व - द्वीपिनस्तां बूलाधिकारो दत्तः पंच० १, स्वाधिकारात् प्रमत्तः - मेघ० १, अधिकारे मम पुत्रको नियुक्त:- मालवि० ५, 3 प्रभुसत्ता, सरकार या प्रशासन, न्यायक्षेत्र, शासन 4 हक, प्राधिकार, दावा, स्वत्व ( धन, संपत्ति आदि का ), स्वामित्व या कब्जे का अधिकार -- अधिकारः फले स्वाम्यमधिकारी तत्प्रभुः -- सा० द० २९६ 5 विशेषाधिकार ( राजा के) 6 प्रकरण, अनुच्छेद या अनुभाग, प्रायश्चित्त'-- मिता०, दे० 'अधिकरण' 7 ( व्या० ) प्रधान या शासनात्मक नियम । सम० - विधिः किसी विशेष कार्य को करने के लिए पात्रता का कथन -स्थ, आढच (वि०) पद पर विराजमान । अधिकारिन्, अधिकारवत् (वि० ) [ अधिकार + णिनि, अधिकार + मतुप् ] 1 अधिकार सम्पन्न, शक्तिसम्पन्न 2 स्वत्व सम्पन्न, हकदार, सर्वे स्युरधिकारिणः 3 स्वामी,
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